स्टालिन, लेनिनवाद के मूल सिद्धांत : किसानों का सवाल-
दूसरे इंटरनेशनल की पार्टियों ने किसानों के सवाल के प्रति जिस उदासीनता और विरोध की जिस भावना का परिचय दिया है, उसका कारण पश्चिम देशों के विकास की विशेषताओं में नहीं है। उसका मुख्य कारण यह है कि ये पार्टियां सर्वहारा अधिनायकत्व में ही यकीन नहीं करतीं। वे क्रांति से भय खाती हैं और राज्यसत्ता पर अधिकार करने के लिए मजदूर वर्ग का नेतृत्व नहीं करना चाहतीं। यह स्वाभाविक है कि जो लोग क्रांति से डरते हैं और सर्वहारा को राजसत्ता की ओर ले जाने की इच्छा नहीं रखते, उनकी सर्वहारा के सहायकों के प्रश्न में भी कोई दिलचस्पी नहीं होगी। उनके लिए इस प्रश्न का कोई महत्व नहीं होता। यहां तक कि किसान समस्या का मजाक उड़ाना भी दूसरे इंटरनेशनल के सूरमाओं द्वारा सभ्यता और 'सच्चे' मार्क्सवाद का लक्षण माना जाता है। सच पूछिए तो इस दृष्टिकोण में मार्क्सवाद के अणुमात्र का भी समावेश नहीं है। सर्वहारा क्रांति के संधि काल में किसानों की महत्वपूर्ण समस्या के प्रति इस प्रकार की उदासीनता सर्वहारा अधिनायकत्व की धारणा का परित्याग कर देने तथा मार्क्सवाद से नाता तोड़ देने के बराबर है।
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