Wednesday, 30 December 2020

दुष्यंत कुमार

आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
पर अंधेरा देख आकाश के तारे ना देख।

एक दरिया है यहाँ दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें ना देख।

अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह,
यह हक़ीक़त देख मगर ख़ौफ़ के मारे ना देख।

वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें ना देख।

ये धुंधलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें ना देख।

राख कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुई,
राख में चिंगारियां ही देख अंगारे ना देख।

दुष्यंत कुमार

No comments:

Post a Comment

१९५३ में स्टालिन की शव यात्रा पर उमड़ा सैलाब 

*On this day in 1953, a sea of humanity thronged the streets for Stalin's funeral procession.* Joseph Stalin, the Soviet Union's fea...