फैज़ अहमद फैज़ की काल जयी नज़्म-"हम देखेंगे", जिसको इकबाल बानो ने ज़िया-उल-हक़ की फौजी तानाशाही के विरोध में गाया था,पढ़ें :-
"हम देखेंगे,
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे,
वो दिन कि जिसका वादा है,
जो लोह-ए-अज़ल में लिखा है,
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएँगे,
हम महक़ूमों के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी,
और अहल-ए-हक़म के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी,
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे,
हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएँगे,
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे।"
-फैज अहमद फैज।
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