सड़े हुए फलों की पेटियों की तरह
बाजार में एक भीड़ के बीच मरने की अपेक्षा
एकान्त में किसी सूने वृक्ष के नीच
गिरकर सूख जाना बेहतर है।
मैं नहीं चाहता कि मुझे
झाड़-पोंछकर दूकान पर सजाया जाय,
दिन -भर मोल-तोल के बाद
फिर पेटियों में रख दिया जाय,
और फिर एक खरीदार से
दूसरे खरीदार की प्रतीक्षा में
यह जीवन अर्थहीन हो जाये।
#सर्वेश्वर_दयाल_सक्सेना की स्मृति में
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