पूँजीवाद के अन्तर्गत छोटा मालिक किसान, वह चाहे या न चाहे, इससे अवगत हो या न हो, एक माल-उत्पादक बन जाता है और यही वह परिवर्तन है जो मूलभूत है, क्योंकि केवल यही उसे, बावजूद इसके कि वह भाड़े के श्रम का शोषण नहीं करता, एक निम्न-पूँजीपति बना देता है और उसे सर्वहारा के एक विरोधी के रूप में बदल देता है। वह अपना उत्पादन बेचता है, जबकि सर्वहारा अपनी श्रम-शक्ति। एक वर्ग के रूप में छोटा मालिक किसान केवल कृषि उत्पादों के मूल्य में वृद्धि ही चाह सकता है और यह बड़े भूस्वामियों के साथ लगान में उसकी हिस्सेदारी और शेष समाज के विरुद्ध भूस्वामियों के साथ उसकी पक्षधरता के समान है। माल-उत्पादन के विकास के साथ ही छोटा मालिक किसान अपनी वर्ग-स्थिति के अनुरूप एक निम्न-भूसम्पत्तिवान मालिक बन जाता है।"
लेनिन
('कृषि में पूँजीवाद के विकास के आँकड़े')
पार्टी के भूमि कार्यक्रम में संशोधन')
"कोई पूछ सकता है: इसका हल क्या है, किसानों की स्थिति कैसे सुधारी जा सकती है? छोटे किसान ख़ुद को मज़दूर वर्ग के आन्दोलन से जोड़कर और समाजवादी व्यवस्था के लिए संघर्ष में एवं ज़मीन तथा उत्पादन के अन्य साधनों (कारख़ानें, मशीनें आदि) को सामाजिक सम्पत्ति के रूप में बदल देने में मज़दूरों की मदद करके ही अपने आप को पूँजी की जकड़ से मुक्त कर सकते हैं। छोटे पैमाने की खेती और छोटी जोतों को पूँजीवाद के चतुर्दिक हमले से बचाकर किसान समुदाय को बचाने का प्रयास सामाजिक विकास की गति को अनुपयोगी रूप से धीमा करना होगा, इसका मतलब पूँजीवाद के अन्तर्गत भी ख़ुशहाली की सम्भावना की भ्रान्ति से किसानों को धोखा देना होगा, इसका मतलब मेहनतकश वर्गों में फ़ूट पैदा करना और बहुमत की क़ीमत पर अल्पमत के लिए एक विशेष सुविधाप्राप्त स्थिति पैदा करना होगा।"
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