---------------------------
" पूंजीवाद पूंजीवाद न होता , यदि ' शुद्ध ' सर्वहारा वर्ग चारों ओर से सर्वहारा तथा ( आंशिक रूप से अपनी श्रमशक्ति बेचकर जीविका कमाने वाले ) अर्धसर्वहारा और छोटे किसानों ( तथा छोटे दस्तकारों , कारीगरों और आम छोटे मिल्कियों ) के बीच के नानारंगी मध्यवर्ती किस्मों के लोगों से न घिरा होता ; यदि खुद सर्वहारा वर्ग अधिक विकसित तथा कम विकसित स्तरों में न बंटा होता , यदि यह क्षेत्र , व्यवसाय और कभी - कभी धर्म आदि के आधार पर भी न बंटा होता । इन सारी बातों से यह निष्कर्ष निकलता है कि सर्वहारा वर्ग के हरावल के लिए, उसके चेतन भाग के लिए, कम्युनिस्ट पार्टी के लिए यह आवश्यक और पूरी तरह आवश्यक है कि वह सर्वहारागण के विभिन्न समूहों के साथ और मजदूरों तथा छोटे मिल्कियों की विभिन्न पार्टियों के साथ दांवपेंच, सुलह-मसालहत और समझौते का सहारा ले । असली सवाल इस कार्यनीति को इस तरह इस्तेमाल कर सकना है कि सर्वहारा की वर्ग चेतना , क्रांतिकारी भावना और लड़ने तथा लड़कर जीतने की क्षमता के आम स्तर मे ह्रास नहीं बल्कि बढाव हो । "
--- लेनिन ( " वामपंथी" कम्युनिज्म - एक बचकाना मर्ज़ )
No comments:
Post a Comment