आप मृत्यु की ओर बढ़ते हैं दबे पाँव
अगर नहीं आते-जाते दूर ठाँव,
नहीं पढ़ते रहते अगर कुछ भी
अगर नहीं सुनते थापें जीवन की
अगर सराहते नहीं स्वयं को
आप मृत्यु की ओर बढ़ते हैं दबे पाँव
जब गँवा देते हैं अपना आत्मसम्मान
जब दूसरों से नहीं लेते कोई मदद
आप मृत्यु की ओर बढ़ते हैं दबे पाँव
अगर बन जाते हैं अपनी लतों के गुलाम
पकड़ते हैं एक ही राह सदा
अगर आप नहीं बदलते अपनी दिनचर्या
अगर नहीं धारते रंग बिरंगी भूषा
या अजनबियों से नहीं बतियाते
आप मृत्यु की ओर बढ़ते हैं दबे पाँव
अगर जज्बात के अहसासात से रहते हैं दूर
और ऐसे भावों को नहीं देते कोई भाव
जिनसे आपकी आँखों में आ जाए नमी
और तेज हो जाएँ धड़कनें
आप मृत्यु की ओर बढ़ते हैं दबे पाँव
अगर नहीं बदलते अपना जीवन
जब सन्तुष्ट न हों अपने काम या प्रेम से
अनिश्चित की रक्षा के लिए जब नहीं उठाते कोई जोखिम
अगर नहीं पोसते कोई सपना
अगर जीवन में कम से कम एक बार
नहीं ठुकराते कोई अच्छी राय
*अनुवाद: भुवेंद्र त्यागी*
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