#सर्वहारा वर्ग के महान नेता कॉ एंग्लेस को याद करते हुए :---
फ्रेडरिक एंगेल्स( 28.11.1820-05.08.1895)
भारतीय इतिहास के सामंती समाज में गुप्त काल के दौरान सामंतवाद का जो विकास हुआ उसने राजाओं को अतिरिक्त आदर देने के लिए जमीन पर लेट कर के दंडवत करने का सत्ता के द्वारा आयोजन शुरू हुआ और इस तरह से सत्ता के सामने पूरी तरह से छूट जाने झूठ जाने के नाम को आदर्श आदर और सम्मान के रूप में महिमामंडित किया गया रूसी सामंती समाज में आदर और सम्मान की इस परंपरा को भाव वादी दृष्टिकोण से आलोचना करते हुए लिओ टॉलस्टॉय ने लिखा कि
' "आदर" शब्द का अविष्कार किया गया था उस ख़ाली जगह को भरने के लिए जहाँ प्यार होना चाहिए था'
लेकिन एंग्लेस ने आदर्शवाद के इस खोल को फाड़ कर के आदर शब्द के पीछे छिपे शोषण उत्पीड़न की पहरेदारी वाले पक्ष को बेनकाब कर दिया।
एंगेल्स इस मोहक लेकिन खोखली बात की वास्तविक जड़ में जाते हैं और उद्घाटित करते हैं कि जब समाज में एक संपत्तिशाली, विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग अस्तित्व में आ गया जो बाकी समाज के श्रम द्वारा किए गए उत्पादन का उपभोग करता था तो ऐसी व्यवस्था को स्वीकृति दिलाने के लिए इस प्रभु वर्ग के प्रति 'आदर-सम्मान' की जरूरत पड़ी, प्यार तो इन दो वर्गों के बीच मुमकिन ही नहीं था!
इस ' *आदर-सम्मान'* को स्थापित करने के लिए कानून बने, हम्मुराबी से मनु तक की स्मृतियाँ लिखी गईं - विधायक, जज-काजी आए, धर्म-ईश्वर बना - पुजारी-प्रचारक आए, शिक्षा व्यवस्था बनी - द्रोणाचार्य जैसे गुरुजी आए, और इन सबसे भी आदर-सम्मान कायम न रहे तो आखिरी उपाय के तौर पर पुलिस-फौज का डंडा बनाया गया - बोल, अब भी नहीं करेगा तू आदर-सम्मान?
इसीलिए प्रेम-मोहब्बत-अहिंसा-भाईचारे, कामरेडसिप के सारे मोहक प्रचार तब तक खोखले हैं जब तक ये इस संपत्तिशाली, विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग से मुक्ति की बात से न जुड़ें हों।
भारत के संदर्भ में देखें तो इस आदर आदर और मान सम्मान देने की परंपरा को बढ़ाने में ब्राह्मणवाद ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। ब्राह्मणवाद की जड़े इसी संपत्ति संबंध और विशेषाधिकार से पाला पोसा जा रहा है।
भारत के इतिहास में जाति व्यवस्था से लेकर पूंजीवादी व्यवस्था तक में शोषण करने के इस विशेष अधिकार की मुख्य भूमिका है। इसे ब्राह्मणवाद हर काल में मेहनतकश जनता को आतंकित करके, बहला-फुसलाकर के और धर्म के जंजाल में फंसा कर के रक्षा की है।
भारत के संदर्भ में पेरियार जब धर्म और ब्राह्मणवाद पर प्रहार करते हैं तो कुछ हद तक शोषण करने के इस विशेषाधिकार पर भी हमला करते हैं। यहीं पर अंबेडकर चूक जाते हैं। जब जाति व्यवस्था का विरोध करते हुए वह शोषण करने की पूंजीवादी व्यवस्था का, लोकतंत्र के नाम पर संविधान के निर्माण का हिस्सा बन कर के रक्षा करने वाली पंक्ति में खड़ा हो जाते हैं। इसलिए आज के मेहनतकश समाज को यदि जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ना है, शोषण उत्पीड़न के खिलाफ लड़ना है तो आदर और मान सम्मान के खोखले बाजीगरी से निकल कर के पूंजीवादी तथा तमाम तरह के शोषण उत्पीड़न की जो व्यवस्था है उसको पर प्रहार करना होगा, उसे बदलना होगा। तभी ब्राह्मणवाद और उसके इतनी गहरी जमी जड़ों को समाप्त किया जा सकता है।
अंबेडकर ने ब्राह्मणवाद पर हमला करते हुए एक दूसरा भाव वादी विचारधारा बौद्धिजम के जाल में मेहनतकशों को फंसा देते हैं,। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब बौद्ध मठों में उत्पादन से कट करके बौद्ध भिक्षुक निष्क्रिय और अय्याशी में रम गए, तब ब्राह्मणवादी शक्तियां सामंती उत्पादक शक्तियों को संगठित करके बौद्धिजम को पूरे भारतीय प्रायद्वीप में तबाह कर दिया।
ब्राह्मणवाद पर मुहम्मद खिलजी और दूसरे सल्तनत के शासकों ने प्रहार किया लेकिन वे उसे तबाह नहीं कर पाए क्योंकि उसकी जड़ें उत्पादन व्यवस्था को नियंत्रण करने वाली सामंती उत्पादन संबंध से जुड़ा था और यही प्रक्रिया पूरे भारत के इतिहास में ब्राह्मणवाद को मजबूत बनाए रहा। मुगल काल में भी अकबर से लेकर औरंगजेब तक शिखर पर रहते हुए अपनी नौकरशाही और नीचे की सामंती सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखा जिसमें ब्राह्मणवाद की ताकत बनी रही। जब पूंजीवाद का विकास हुआ तो ब्राह्मणवादी शक्तियों ने अंग्रेज शासकों की नौकरशाही और भारत के आजादी के बाद वाली नौकरशाही में मजबूत जगह बना ली।
इस तरह से ब्राह्मणवाद की जड़ें भूमि संबंधों से लेकर नौकरशाही तक व्याप्त हो गई जिनका व्यापारी वर्ग और अन्य सामंती शोषक जाति तथा वर्गों से मजबूत गठबंधन रहा।
ब्राह्मणवाद इन सबों का वैचारिक तथा दार्शनिक नेता भारतीय राजनीति में बना रहा। आज सभी संसदीय राजनीति करने वाली पार्टियां ब्राह्मणवाद के साथ समझौता किए हुए हैं और उसे मजबूत बना रहे हैं। ब्राह्मणवाद और उसके दंडवत वाली संस्कृति के खिलाफ सिर्फ वही राजनीतिक शक्ति लड़ सकती है जो पूंजीवादी व्यवस्था और इसकी रक्षा करने वाले अन्य वर्गों पर सीधे-सीधे प्रहार कर वैज्ञानिक समाजवाद के निर्माण और सभी सामाजिक संपत्ति पर समाज के अधिकार वाली व्यवस्था की बात करता है . जिसे मार्क्स और एंगेल्स ने प्रतिपादित किया और लेनिन स्तालिन ने मजदूरों के प्रथम राज्य के रूप में स्थापित किया , जिस दिशा में आगे बढ़ते हुए माओ ने चीन में क्रांति की और समाजवाद के निर्माण के लिए कोशिश की।
No comments:
Post a Comment