क्योकि पूंजीवादी सरकार अपने नागरिकों को सम्मानित रोजगार मुहैया कराने में अक्षम है, न्यायपालिका ने आजीविका के लिए महिलाओ को वेश्यावृति का पेशा चुनने का रास्ता साफ कर दिया है। हमारी संस्कृति के धार्मिक पन्नो में जिन महिलाओं को देवी कह कर महिमा मंडित किया गया है, उन सभी के लिये पूंजीवाद में सम्मानजनक आजीविका मुहैया कराना सम्भव नही है।
वेश्यावृत्ति से जुड़े एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि इम्मोरल ट्रैफिक प्रिवेंशन एक्ट के तहत वेश्यावृत्ति जुर्म नहीं है। जस्टिस पृथ्वीराज के चव्हाण ने कहा कि किसी औरत को अपनी मर्जी का पेशा चुनने का अधिकार है। ऐसे में किसी भी महिला को उसकी सहमति के बिना लंबे वक्त तक सुधार गृह में नहीं रखा जा सकता है।
फैसला वेश्यावृत्ति के आरोप में पकड़ी गईं तीन युवतियों की याचिका पर सुनाया गया है। इन युवतियों को सुधार गृह में रखा गया था। जस्टिस चव्हाण ने कहा कि कानून का मकसद देह व्यापार को खत्म करना है, न कि महिलाओं को दंडित करना।
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