न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसान संगठन हो हल्ला मचा रहे हैं। इसके खात्मे को ले कर आंदोलन करने की बात कर रहे हैं, लेकिन अगर हम कुछ आंकड़ो पर नज़र डालें तो तस्वीर कुछ और ही दिखती है।
कृषि मामलों के विश्लेषक देवेंद्र शर्मा, जो कहीं से भी मार्क्सवादी नहीं हैं, के अनुसार
भारत मे केवल 6 प्रतिशत किसानों को ही एमएसपी का फायदा मिलता है। बाकी आज भी खुले बाजार में अपना उत्पाद बेचते हैं।
बिहार में 16 साल पहले APMC मंडी को बंद कर दिया गया था, लेकिन आज भी यह प्रदेश उस बाजार आधारित चमत्कार को देखने की बाट जोह रहा है।
पूरे देश में केवल 7 हज़ार मंडियां हैं, मतलब अधिकतर मंझोले और सीमांत किसान की पँहुच से दूर।
किसानों को एक समरूपी वर्ग के तौर पर देखने का नतीज़ा है कि वामपंथ कारगर कृषि प्रश्न पर संजीदा लाइन पेश करने में विफल रहा है, नतीजतन उसे भी बड़े किसानों की पैरोकारी करने वाले बीकेयू सरीखे यूनियनों का पिछलग्गू बनना पड़ रहा है।
आज जबकि ज़रूरत है कृषि क्षेत्र में पूंजीवादी संबंधों को उजागर कर उसे पूंजीवादी के खिलाफ़ संघर्ष से जोड़ने की। कृषि प्रश्न का अखिल भारतीय एक नज़रिया नहीं हो सकता (इस पर विस्तृत चर्चा अपने आगामी दस्तावेज़ में कई जायेगी)
इन बिलों के आने के बाद सरप्लस जनसंख्या और श्रमिकों की रिज़र्व सेना में वृद्धि होगी, और यही तो पूंजी संचालन का चरित्र है।
।।विस्तार से इस विषय पर जल्द ही।।
दामोदर
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