Wednesday, 23 September 2020

सिद्धान्त और व्यवहार- द्वन्द्वात्मक सम्बन्ध


"सिद्धान्त का महत्व. कुछ लोगों को लगता है कि लेनिनवाद इन अर्थों में सिद्धान्त पर व्यवहार की वरीयता है कि इसका प्रमुख बिन्दु है मार्क्सवादी थीसीज़ को काम में बदल देना, यानी उनका "अमल"; जहाँ तक सिद्धान्त का प्रश्न है, यह आरोप लगाया जाता है कि लेनिनवाद इसके बारे में ज़्यादा सरोकार नहीं रखता है। हम जानते हैं कि प्लेखानोव ने कई बार लेनिन का सिद्धान्त और विशेषकर दर्शन के प्रति "सरोकार न रखने" के लिए मज़ाक़ बनाया था। हम जानते हैं कि आज के कई लेनिनवादी व्यावहारिक कार्यकर्ताओं के लिए सिद्धान्त की कोई विशेष प्रतिष्ठा नहीं है, विशेषकर व्यावहारिक कार्यों के उस भारी परिमाण के कारण जो उन पर स्थितियों द्वारा थोप दिया गया है। मुझे यह घोषणा करनी ही होगी कि लेनिन और लेनिनवाद के विषय में यह अजीबो-ग़रीब राय बिल्कुल ग़लत है और इसका सच से कोई रिश्ता नहीं है; कि सिद्धान्त को किनारे करने का व्यावहारिक कार्यकर्ताओं का प्रयास लेनिनवाद की पूरी स्पिरिट के ख़िलाफ़ जाता है और इसमें काम के लिए बहुत ख़तरे हैं।

"सभी देशों में मज़दूर वर्ग के आन्दोलन के अनुभव को जब हम सामान्य आयाम में देखते हैं, तो उसे ही सिद्धान्त कहा जाता है। निश्चित तौर पर, सिद्धान्त क्रान्तिकारी व्यवहार से जुड़े बिना लक्ष्यहीन हो जाता है, ठीक उसी प्रकार जैसे कि व्यवहार अन्धेरे में भटकता रहता है यदि क्रान्तिकारी सिद्धान्त द्वारा उसका मार्ग आलोकित नहीं किया जाता है। लेकिन अगर मज़दूर वर्ग के आन्दोलन में सिद्धान्त क्रान्तिकारी व्यवहार से अविभाज्य रूप से जुड़ा हो तो वह एक ज़बर्दस्त ताक़त बन जाता है; क्योंकि सिद्धान्त और केवल सिद्धान्त ही आन्दोलन को आत्मविश्वास, दिशा की शक्ति, और आस-पास की घटनाओं के आपसी रिश्तों की एक सही समझदारी दे सकता है; क्योंकि, केवल यही व्यवहार को न केवल इस बात का अहसास कराने में मदद कर सकता है कि मौजूदा समय में तमाम वर्ग किस दिशा में बढ़ रहे हैं, बल्कि यह भी अहसास करा सकता है कि निकट भविष्य में वे किस दिशा में जायेंगे। लेनिन के अलावा किसी ने भी इस प्रसिद्ध थीसिस को सैंकड़ों बार कहा और दुहराया नहीं होगा कि:

"'बिना एक क्रान्तिकारी सिद्धान्त के कोई क्रान्तिकारी आन्दोलन नहीं हो सकता है।'

"किसी भी अन्य व्यक्ति से बेहतर लेनिन ने सिद्धान्त के महान महत्व को समझा, विशेष तौर पर हमारी जैसी पार्टी के लिए, क्योंकि अन्तरराष्ट्रीय सर्वहारा के हिरावल योद्धा की भूमिका इसके कन्धों पर आ पड़ी है, और क्योंकि इसके सामने ऐसी जटिल आन्तरिक और अन्तरराष्ट्रीय स्थितियाँ हैं। हमारी पार्टी की इस विशेष भूमिका को 1902 में ही समझकर ही उन्होंने उसी समय यह कहना ज़रूरी समझा था कि:

"'हिरावल पार्टी की भूमिका को केवल वही पार्टी निभा सकती है जो सबसे उन्नत सिद्धान्त से मार्गदर्शित हो।'

"अब इस बात के लिए किसी सबूत की ज़रूरत नहीं है, जबकि हमारी पार्टी की भूमिका के बारे में लेनिन की यह भविष्यवाणी सही सिद्ध हो चुकी है, कि लेनिन की इस थीसिस को विशेष बल और विशेष महत्व मिल चुका है।"

(स्तालिन, 'लेनिनवाद के मूल सिद्धान्त')

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