डूबती हुई अर्थव्यवस्था में पूरा पूंजीवादी कॉर्पोरेट सेक्टर मानो अंतिम सांसे ले रहा है। इन्हें कर्ज देने वाले तमाम कमर्शियल बैंक का बढ़ता हुआ NPA चिंता का विषय बना हुआ है। इन खून चूसने वाले निजी क्षेत्र के कॉर्पोरेट सेक्टरो में से कुछ को(सभी को बचाना सम्भव नही है) बैंक किस आधार पर बचाये, इसके लिये कामथ कमिटी के सुझाव आ गया है।
बचे कॉपरेटिव बैंक तो उनकी बहुत खराब हालत के बारे में बोलते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि मार्च 2019 में कॉपरेटिव बैंकों का ग्रॉस एनपीए 7.27 फीसदी था, जो मार्च 2020 में बढ़कर 10 फीसदी से ज्यादा हो गया था। कारोबारी साल 2018-19 में 277 अर्बन कॉपरेटिव बैंकों ने घाटा दर्ज किया था। मंत्री ने कहा कि मार्च 2019 के आखिर में 100 से ज्यादा अर्बन कॉपरेटिव बैंक मिनिमम रेगुलेटरी कैपिटल रिक्वायरमेंट को पूरा नहीं कर रहे थे और 47 अर्बन कॉपरेटिव बैंकों का नेटवर्थ निगेटिव था।
पिछले साल सितंबर में पीएमसी बैंक का घोटाला सामने आने के बाद कॉपरेटिव बैंकों को नियमित करने का प्रस्ताव आया था। 4,355 करोड़ रुपए का घोटाला उजागर होने के बाद आरबीआई ने पीएमसी बैंक पर कई पाबंदियां लगा दी थीं। घोटाला के कारण पीएमसी बैंक के 9 लाख से ज्यादा ग्राहकों की बचत खतरे में पड़ गई।
ऐसी खराब हालत फिर कभी न आये, इसके लिये क्या किया जाए? लोकसभा ने बैंकिंग रेगुलेशन (अमेंडमेंट) बिल, 2020 पारित किया है, कानून बनने के बाद आरबीआई की निगरानी में कॉपरेटिव बैंक आ जायगे। हालांकि आरबीआई की निगरानी में तो पहले से सारे कमर्शियल बैंक है, उनकी हालत भी तो खराब है, उनमे भी घोटाले हो रहे है।
यह भी झूठा प्रचार किया जा रहा है कि बैंकिंग रेगुलेशन (अमेंडमेंट) बिल depositors के हितों को ध्यान में रख कर किया जा रहा है।
कमर्शियल बैंक में डेपोसिटर्स के हित किस सीमा तक सुरक्षित किया गया है? 1961 के जमा राशि बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम अधिनियम (डिपाजिट इन्शुरन्स एंड क्रेडिट गारंटी कारपोरेशन एक्ट) के तहत, यदि कोई बैंक डूबता है तो लोगों द्वारा जमा की गई एक लाख तक की राशि का बीमा होता है।
पेंशन की सुविधा से वंचित रिटायरमेंट बेनिफिट के पैसे लोग कहाँ रखे जिससे उन्हें एक निश्चित माहवारी आय आती रहे और उनकी पूंजी भी सुरक्षित रहे। मध्यम वर्ग आज इस सवाल से झूझ रहा है। उन्हें डर है कि उनका सबकुछ लूट न जाये, पैसा बैंक में रहते हुए वे उसे निकाल न सके, जैसा कि पीमसी बैंक के जमाकर्ताओं के साथ हुआ और आज भी पीएमसी बैंक के ग्राहक अपना पैसा लेने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
इसके अलावे सरकार FRDI bill (अब FSDR) लाने वाली है जिसके पास होने के बाद, वित्तीय संस्थाओं को आर्थिक संकट में फंसने की स्थिति में, जो अभी सरकारी पैसे से बेल आउट किया जाता है, depositor की कीमत पर बेल-इन किया जाएगा। बैंक को आत्मनिर्भर भारत का हिस्सा बनाने के लिये सरकार नही बल्कि बैंक के depositor उस बैंक को घाटे से उबारने में मदद करेगे।
यानिकि, आपके बैंक में डिपाजिट जो अभी एक लायबिलिटी है, उसे इक्विटी में बदल देने का अधिकर रेसोलुशन अथॉरिटी को रहेगा।
क्या कोआपरेटिव बैंक बिना बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट में बदलाव के FSDR के दायरे में नही आते और इसलिये बैंकिंग रेगुलेशन (अमेंडमेंट) बिल लाया गया है?
बैंकिंग रेगुलेशन (अमेंडमेंट) बिल डेपोसिटर्स के हित में नही है, यह खून चूसक वित्त पूंजी के हित में है। यह समझना बहुत कठिन नही है।
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