जिस वर्ग की सत्ता होती है वह वर्ग अपने वर्ग हितों की सुरक्षा के लिए संविधान बनाता या बनवाता है।
जिन्हें लगता है कि संविधान हमारा है, उन्हें विचार करने के लिए हम कुछ तथ्य दे रहे हैं-
(1)अनुच्छेद-19- 1(A) बोलने की आजादी देता है जबकि 1951में पहला संविधान संशोधन करके अनु. 19- 1(B)- जोड़कर 'आन्तरिक सुरक्षा को खतरा' के नाम पर अभिव्यक्ति की आजादी छीन ली गयी।
(2)अनु. 25 बौद्ध, जैन, सिख,लिंगायत आदि को हिन्दू धर्म का अंग मानता है। जब कि अम्बेडकर इस के विरुद्ध थे। बौद्ध बनकर हिन्दू धर्म छोड़ने की बात कर रहे थे।
(3) अनु.290(क) के अन्तर्गत केरल राज्य प्रतिवर्ष 46 लाख 50 हजार तथा तमिलनाडु राज्य 13 लाख 50 हजार प्रतिवर्ष हिन्दू मंदिरों के लिए देवस्थानम् निधि को देने के लिये बाध्य है। यहाँ तो गारण्टी दिया जा रहा है।
जब कि अनु. 36 से 51 तक लिखे नीति निर्देशक तत्व जो कि जनता के पक्ष में हैं, उन जनपक्षधर प्रावधानों को लागू करने के लिये सरकारों को बाध्य नहीं किया गया है।
सामन्ती मठाधीशों के हितों में तो गारण्टी है मगर जनता के मामले में कोई गारण्टी नहीं है। इन नीति निर्देशक तत्वों को सरकार चाहे तो लागू करे, चाहे तो न करे।
(4) अनु. 363 भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के हितों का संरक्षण करता है। इसमें ब्रिटिश साम्राज्य के हितों को सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर रखा गया है
(5) अनु. 14 में सिर्फ विधि के समक्ष समता की बात की गयी है। पूरे संविधान में आर्थिक समानता के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
(6) पूरे संविधान में कहीं भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई जिक्र तक नहीं है। जब कि राजनीतिक स्वतंत्रता बिना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता 99%जनता के लिए निरर्थक है।
उद्देश्यिका में भी फ्रीडम नहीं लिबर्टी शब्द है, वह भी पूजापाठ के लिए। जबकि हमारे लोगों को सामाजिक, आर्थिक क्षेत्र में समानता एवं राजनीतिक क्षेत्र में क्षेत्र में फ्रीडम यानी स्वतंत्रता जरूरी थी।
मगर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक क्षेत्र में सिर्फ न्याय देने की बात लिखी है।
(7) अनु. 372- जाति एवं वर्ण व्यवस्था को बनाए रखने को मजबूर करता है।
इसी कारण तमिलनाडु सरकार ने जब मठाधीशी में आरक्षण लागू नहीं करने की कोशिश किया तो कोर्ट ने इस आरक्षण को निरस्त कर दिया।
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सीलिंग एक्ट के बावजूद आज भी हजारों एकड़ जमीन के मालिक कैसे मौजूद हैं? दरअसल संविधान यह छूट देता है कि सामन्ती ताकतें ट्रस्ट के जरिये चाहे जितनी जमीन हड़प लें, संविधान या सीलिंग एक्ट उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
मुनाफे के जरिये चन्द पूँजीपति देश की 90% संपदा हड़प चुके हैं, जनता कर्ज लेकर गुजारा करने के लिए बाध्य है। दरअसल मुनाफे के जरिये कोई एक ही पूँजीपति पूरा देश लूट ले, संविधान इस पर कोई रोक नहीं लगाता।
पूंजीपतियों का मुनाफा बढ़ाने के लिए मँहगाई बढ़ाना और इस तरह मँहगाई बढ़ाकर गरीबों की हत्या करना संविधानसम्मत है।
मँहगाई, बेरोजगारी बढ़ाना संविधान की मूल भावना के विरुद्ध नहीं है।
यह संविधान उत्पीड़न की खिलाफत करता है मगर शोषण की खिलाफत नहीं करता है।
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कुछ लोगों को भ्रम है कि संविधान हमारा है क्योंकि हमारे बाबा ने बनाया है। गजब तर्क है। जिसने मकान बनवाया उसका नहीं है, मकान उसका हो गया जिसके बाबा ने राजगीरी की है।
शोषक वर्ग यही तो चाहता है- तुम जातिवाद करो, मजदूरों किसानों में फूट डालो शोषक वर्ग के इस संविधान को पूजो क्योंकि तुम्हारे बाबा ने बनाया है।
तुम बताते रहो कि बाबा ने दिन-रात कठिन परिश्रम करके दोनों हाथों से संविधान लिखा है। संविधान सभा में बाकी सब घास छील रहे थे।
संविधान किसी ने भी लिखा हो, यह मायने नहीं रखता। मायने यह रखता है कि किसके पक्ष में है।
कोई बलात्कारी बलात्कार करने के बाद 10-20 रूपये दे दे तो इसे उपलब्धि नहीं माना जा सकता। मगर कुछ लोग ऐसी चीजों को भी उपलब्धि मानते हैं।
वे संविधान की सच्चाइयों को जानने के बावजूद कहते हैं कि "कुछ तो मिला।"
*रजनीश भारती*
*जनवादी किसान सभा
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