Monday, 23 October 2023

दुर्गापूजा की शुरुआत कैसे हुई ?

दुर्गापूजा की शुरुआत कैसे हुई ?

1757 में सिराजुद्दौला की हार और लॉर्ड क्लाईव की जीत ने समाज को दो भागों में विभक्त कर दिया .. बड़े जमींदार , अमीर सेठ जो अंग्रेजों का साथ थे , जनता की नजर में विश्वासघाती बन घृणा के पात्र बन गये ।

    जीत की खुशी में क्लाईव अपने ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए एक समारोह करना चाहता था , लेकिन कोलकाता के चर्च को नवाब ने ध्वस्त करा दिया था तो वह अपने फारसी अनुवादक  और सहयोगी , शोभा बाजार के राजा नबकृष्ण देव से मंत्रणा किया .. राजा नबकृष्ण देव ने एक योजना पेश की और इस तरह दुर्गापूजा की शुरुआत हुई ।

  राजा नबकृष्ण देव ने दुर्गा की विशाल प्रतिमा का निर्माण कराया , उसे सोने चांदी और जवाहरात से सजाया , दिल्ली लखनऊ से लड़कियों को बुलाकर मनोरंजन का भव्य इंतजाम किया और लॉर्ड क्लाईव को मुख्य अतिथि के रूप में निमंत्रित किया , प्रसाद एवं भोग के नामपर नाना प्रकार के पकवान और मिष्ठान्न का प्रबंध किया ..और इस प्रकार घृणा के ज्वार को भक्ति की लहर में परिवर्तित कर दिया ।

इतिहासकार तपन रायचौधरी अपने " मदर ऑफ यूनिवर्स " नामक निबंध में कहते हैं कि - " नये अमीरों के लिए दुर्गापूजा धन के प्रदर्शन और साहबों ( अंग्रेजों ) के साथ मेलजोल का एक भव्य अवसर बन गया । रायचौधरी के अनुसार " भक्ति की बजाय विशिष्ट उपभोग " इस त्योहार का केन्द्रीय उद्देश्य था , इस तरह दुर्गापूजा देवी पूजा से ज्यादा मौजमस्ती का अवसर बन गया ।

जब जब शासकवर्ग और पूंजीवाद संकट में फंसता है  तब तब धर्म अपने क्रूरतम रूप में सामने आता है , विभिन्न प्रकार के देवी देवताओं का अवतार होता है ..और जनता तो है हीं धर्मभीरु , फिर सारी क्रांति यहीं कि यहीं धरी रह जाती है।😥


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