4 मई को मणिपुर के बी-फीनोम गांव में 800-1000 उपद्रवियों की एक सशस्त्र भीड़ ने पहले एक पीड़िता के सामने ही उसके भाई और बाप को मार डाला।
महिलाओं के कपड़े फाड़कर नंगा कर दिया, महिलाओं को सड़क पर नंगा घुमा कर बीच सड़क पर उनके प्राइवेट पार्ट्स को बुरी तरह टच किया, भद्दी गालियाँ दिया, धकियाया, इस हिंसा की वीडियो रिकॉर्डिंग किया और उन्हें एकान्त में ले जाकर गैंगरेप किया।
सामूहिक बलात्कार और हत्या की ऐसी जघन्य वारदात अभी तक न देखी गयी न सुनी गयी। मगर सरकार इस घटना पर 2 महीने से लीपापोती करती रही।
इस घटना के 75 दिन बाद वायरल वीडियो देख कर जब पूरी दुनिया भारत सरकार पर थूकने लगी और सुप्रीम कोर्ट की फटकार पड़ी तब दुनिया के सबसे मोटी चमड़ी वाले (संवेदनहीन) धृतराष्ट्र को शर्म आयी है।
मगर शर्म दिखावटी थी। यदि वास्तव में इस व्यक्ति में जरा सी भी शर्म होती तो कम से कम मणिपुर के सीएम से इस्तीफा ही माँग लेता।
मगर इसने उत्पीड़ित महिलाओं के प्रति फर्जी सहानुभूति दिखाते समय भी छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सरकारों पर निशाना साधते हुए खुद को राजनीतिक रूप से नंगा कर लिया। उफ्फ इतना बेशर्म और नंगा?
महाभारत का काल्पनिक धृतराष्ट्र भी इतना बेशर्म नहीं था। फासिस्ट राजनेता भयानक रूप से बेशर्म भी होता है, इतना बेशर्म न हो तो फासिस्ट नहीं हो सकता।
महिलाओं को सड़क पर नंगा घुमाने की घटना के संबन्ध में हुए एफआईआर के मुताबिक, दंगाइयों की एक भीड़ ने एक गांव पर हमला किया, लूटपाट किया और घरों को जला दिया।
पांच लोगों का एक परिवार इस भीड़ के क्रूर हमले से बचने के लिए जंगल की ओर भागा पुलिस ने उन्हें बचाने की कोशिश की। लेकिन जल्द ही, जब एक भीड़ ने परिवार को घेर लिया तो उन्हें पुलिस ने उन्हें भीड़ को सौंप दिया।
भीड़ ने पुलिस के सामने ही 56 वर्षीय एक व्यक्ति की मौके पर हत्या करने के बाद तीन महिलाओं पर हमला किया, उनके कपड़े उतरवा दिए गए और उन्हें नग्न करके घुमाया गया। भीड़ ने 21 वर्षीय एक महिला के साथ भी कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया।
एक 19 वर्षीय युवक ने भीड़ को अपनी बहन पर हमला करने से रोकने की कोशिश की तो उसकी भी हत्या कर दी गई।
यह तो एक घटना है जो प्रकाश में आ गयी। सरकार ने मणिपुर का सारा इन्टरनेट बीते ढाई महीने से बंद कर रखा है। अनेकों सूचनाएं बाहर आ नहीं पाती हैं।
एक अनुमान के मुताबिक ऐसी सैकड़ों जघन्य घटनाएं हुई होंगी। जिसकी सूचना हम तक नहीं पहुँचने दी जा रही है। वहाँ के सीएम ने खुद ही ऐसी सैकड़ों घटनाओं की रिपोर्ट की बात स्वीकार किया है।
हैरानी यह है कि 56 इंच छाती, 14 लाख से अधिक सेना के सक्रिय जवानों के साथ विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना, विश्व का तीसरा सबसे बड़ा रक्षा बजट, ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट" (BPR&D) की मानें तो देश में कुल 19.26 लाख पुलिसकर्मी,10 लाख अर्ध सैनिक बल, कुल 56 करोड़ छोटे हथियार, लाखों की तादाद में बड़े हथियार… इतनी बड़ी ताकत फिर भी मणिपुर ढाई महीने से हिंसा की आग में जल रहा है।
विश्वगुरू होने का दंभ पाले हुए 3 करोड़ साधू चुप हैं और मणिपुर जल रहा है।
नहीं-नहीं, मणिपुर को हिंसा की आग में जलाया जा रहा है।
यह कैसे संभव हुआ?
मणिपुर को जलाने की पटकथा इस प्रकार है- कूकी व नागा समुदाय को जंगलों, पहाड़ी क्षेत्रों से बेदखल करने के लिए मैतेई समुदाय की तरफ से अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाए जा रहे हैं जिससे आदिवासी खफा हैं।
इसके अलावा मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग से कूकी और नागा आदिवासी समुदाय काफी तनाव में है।
उन्हें आशंका है कि सम्पन्न मैतेयी समुदाय के लोग जनजाति का दर्जा पा जायेंगे तो वे आदिवासियों की जमीन पर धीरे-धीरे कब्जा कर लेंगे और सरकारी नौकरियों की सारी आरक्षित सीटों पर उन्हीं का कब्जा हो जायेगा।
भारत की अर्धसामन्ती समाज की दशा देखने से उनकी आशंका जायज दिखती है। इसी लिए जब हाई कोर्ट का आदेश आ गया तो आदिवासी (कूकी व नागा)समुदाय और ज्यादा भड़क गया।
अधिकांश जज बड़े सामन्ती घरानों से आते हैं। उन जजों पर शोषकवर्ग का प्रभाव रहता है। संभवतः शोषकवर्गों की मिलीभगत से ही 20 अप्रैल को मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया होगा, कि "सरकार चार हफ्तों के अंदर मैतेई समुदाय की ओर से एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करे।"
हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ कूकी व नागा आदिवासियों ने 3 मई को रैली निकाली। रैली ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (ATSUM) की ओर से निकाली गई थी।
इस रैली के खिलाफ मैतेई समुदाय के लोग भी सड़क पर उतर गए। इस तरह गैर-आदिवासियों ने आदिवासी समुदाय पर हमला बोल दिया।
पुलिस ने इसे रोकने का कोई कारगर उपाय नहीं किया। सेना बुलाई गयी मगर सेना की कार्यवाही भी सरकार की मन्सा के अनुरूप ही दिखाई पड़ी। सेना और पुलिस इतनी मुस्तैद थी कि भीड़ ने उनके शस्त्रागार से आसानी से हथियार लूट लिया।
राज्य पुलिस मुख्यालय के एक आधिकारिक आकलन से पता चला कि विभिन्न शस्त्रागारों और पुलिस स्टेशनों से भारी मात्रा में उच्च श्रेणी के गोला-बारूद, एके -47, स्नाइपर राइफल और मोर्टार के गोले सहित 3,500 बंदूकें दंगाइयों की भीड़ लूट ले गई।
घातक हथियारों सहित कम से कम 5 लाख गोलियां भी भीड़ द्वारा लूट ली गयी हैं। इतनी ताकतवर सेना पुलिस के हथियार इतने बड़े पैमाने पर लूट लिए जाते हैं, कोई सशक्त जवाबी कार्यवाही नहीं होती। आखिर क्यों?
नहीं-नहीं, ऐसा लगता है लूट की छूट देकर इसी तरीके से दँगाइयों को हथियार मुहैया कराया गया है। ऐसा लगता है कि सरकार जिस मेइतेई समुदाय को आदिवासी का दर्जा दे रही है, उसी समुदाय को हथियार भी मुहैया करा रही है। पहले से भी हथियारों के 90% से अधिक लाइसेंस मेइतेइयों को ही सरकार ने दिया है।
कूकी और नागा आदिवासियों की भीड़ ने भी हथियार लूटने की कोशिश किया था मगर सेना, पुलिस की जवाबी कार्यवाही से विफल हो गया।
जब कि मेइतेई समुदाय की भीड़ जब सेना, पुलिस का हथियार लूटा था तो कोई विशेष हिंसक झड़प नहीं हुई थी। सरकार इस भीड़ को ढील न देती तो वह भीड़ हथियार न लूट पाती।
सरकार की साजिश न होती तो यह दंगा इतने दिनों तक न हो पाता। सरकार अल्पसंख्यक कूकी व नागा आदिवासियों को जंगलों व पहाड़ों से बेदखल करने के लिए बहुसख्यक मेइतेइयों को भड़का रही है। और इसमें जो गोदी मीडिया 'इसाई बनाम हिन्दू' के रूप में दिखा रही है वह झूठ और बेबुनियाद है।
वास्तव में यह दंगा धार्मिक आधार पर नहीं है। क्योंकि नवीनतम जनगणना के अनुसार मणिपुर की जनसंख्या कुल 28.56 लाख है। धार्मिक आधार पर देखें तो मणिपुर राज्य में हिंदू और इसाई आबादी लगभग बराबर है।
मणिपुर की 41.39% आबादी हिंदू धर्म से है तो 41.29 प्रतिशत ईसाई भी हैं। 8.4% मुसलमान भी हैं। मैतेइयों में लगभग 10% मुसलमान हैं तथा तथा ईसाई भी इसी के आसपास हैं।
ठीक इसी तरह नागा और कूकी में भी ज्यादातर लोग इसाई मगर कुछ लोग हिन्दू हैं और कुछ मुसलमान भी हैं। ऐसे में कूकी नागा और मेइतेइयों के बीच धार्मिक झगड़े का तो सवाल ही नहीं उठता।
झगड़े की असल वजह कुछ और है। आदिवासी यानी कुकी और नागा मिलकर लगभग 40%, हैं जिसमें 25% कुकी और 15% नागा हैं। मैतेयी 53% हैं। 7% अन्य समुदाय से हैं। 53% मैतेई आबादी सिर्फ 10.02% जमीन पर आबाद है, शेष 89% जमीन पर 40% नागा और कूकी आबाद हैं।
देखने में यह मैतेइयों के साथ बहुत नाइन्साफी लग रही है। मगर सच्चाई इससे भी अलग है।
सच्चाई यह है कि पूरा मणिपुर 22,327 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। इसका 2,238 वर्ग किमी यानी 10.02% इलाका ही घाटी है। जबकि 20,089 वर्ग किमी यानी 89% से ज्यादा इलाका जंगल और पहाड़ है। 10.02% जमीन जो घाटी में है वह मैतेइयों के पास है वह जमीन बहुत उपजाऊ है।
जिसकी वजह से मैतेई समुदाय के अधिकांश लोग बहुत सम्पन्न हैं। ज्यादातर सामन्त, पूँजीपति और भू-माफिया इसी समुदाय से हैं। उनमें अधिकांश सवर्ण की हैसियत में हैं मगर उन्हें ओबीसी का दर्जा मिला हुआ है। अब उनमें से कुछ दबंग लोग एसटी का दर्जा माँग रहे हैं।
शेष जो 90% जमीन है उस जमीन का अधिकांश भाग जंगल और पहाड़ है, जिसका बड़ा हिस्सा वनविभाग, खनन विभाग, सरकार व सेना के कब्जे में है।
शेष बहुत थोड़ी अनुपजाऊ जमीन कूकी व नागा समुदाय के पास रही है, इस जमीन को कई पीढ़ियों से कठिन परिश्रम करके कूकी व नागा समुदाय के लोगों ने थोड़ा उपजाऊ बना दिया है। इस जमीन पर मैतेई समुदाय के सामन्ती भूमाफियाओं की गिद्ध दृष्टि बनी हुई है। यद्यपि कूकी व नागा समुदाय में जो नवसामन्त हैं, अधिकांश पर कब्जा उन्हीं का है।
भारत के बड़े पूँजीपति इन सामन्ती भूमाफियाओं के सहयोग से मणिपुर के जंगल और और पहाड़ों पर कब्जा करना चाहते हैं। यहाँ की जमीन में लोहा, तांबा, अभ्रक, हीरा और खास तौर पर क्रोमाइट का बड़ा भण्डार है।
इस भण्डार को ये लोग लूटना चाहते हैं। विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ इन्हें वित्तीय और तकनीकी मदद के नाम पर भारी मुनाफा कमाना चाहती हैं।
सामन्ती भूस्वामी, बड़े पूंजीपति और विदेशी साम्राज्यवादी ये तीनों ताकतें मिलकर मैतेई समुदाय के भूमिहीन व गरीब व मध्यम किसानों को आरक्षण, ड्रग्स की खेती और पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदने की लालच देकर कूकी व नागा समुदाय के भूमिहीन, गरीब व मध्यम किसानों खिलाफ लम्बे समय से भड़काती रही हैं।
मणिपुर में जारी हिंसा की असली वजह यही है।
मणिपुर तो जल रहा है। ऐसे ही लोग चुप रहे तो सबकी बारी आयेगी।
रजनीश भारती
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