"हमें प्रकृति और सामाजिक नीतियों के मुताबिक चलना चाहिए। पीढ़ियों से घर की चारदीवारी महिलाओं के काम का मुख्य केंद्र रहा है। उनके लिए अपना बेहतर प्रदर्शन करने हेतु यह दायरा पर्याप्त है। एक हिंदू लड़की को निश्चित रूप से एक बेहतरीन बहू के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। हिंदू औरत की सामाजिक उपयोगिता उसकी सिंपैथी और परंपरागत साहित्य को ग्रहण करने को लेकर है। लड़कियों को हाइजीन, डोमेस्टिक इकोनॉमी, चाइल्ड नर्सिंग, कुकिंग, सिलाई आदि की बेहतरीन जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।"(बाल गंगाधर तिलक, 20 फरवरी 1916, मराठा अखबार)
यह पंक्तियां किसी अनाम व्यक्ति कि नहीं बल्कि भारत में लोकमान्य के रूप में स्वीकार किए जाने वाले बाल गंगाधर तिलक की है। स्त्रीद्वेषी विचारों के बाद भी चितपावन ब्राह्मण होने का लाभ हमेशा से तिलक को मिला है इसलिए वे भारत में लोकमान्य के रूप में स्वीकार किये जाते हैं।
हिंदुत्ववादी फायरब्रांड नेता कहे जाने वाले तिलक ने 1885 में लड़कियों के लिए पहला हाई स्कूल खोले जाने के रमाबाई के प्रयासों का घनघोर विरोध किया था। इस प्रयास में असफल होने पर उन्होंने लड़कियों के 11:00 बजे से 5:00 बजे तक घर के बाहर रहने का भी विरोध किया और उन्हें घर के कामकाज सिखाने के लिए तीव्र अभियान चलाया। इन्होंने लगातार अपने अखबारों के लेखों में लिखा की कोई भी अपनी लड़की को इतने समय तक घर से बाहर नहीं रहने दे ताकि वे स्कूल नहीं जा सके। उनका कहना था कि पढ़-लिखकर लड़कियां रमाबाई की तरह हो जाएंगी जो अपने पति का विरोध करके समाज और संस्कृति को खराब करेंगी।
तिलक ने लड़कियों की शिक्षा का पाठ्यक्रम बदलकर उन्हें केवल पुराण, धर्म और घरेलू काम जैसे बच्चों की देखभाल, खाना बनाना आदि की शिक्षा प्राप्त करने तक ही सीमित रखने की वकालत की। उनका मानना था कि लड़कियों को शिक्षा देना करदाताओं के धन की बर्बादी है |
महिलाओं के संदर्भ में तिलक के विचार मनु के विचारों से किसी भी रुप में अलग न होकर उसका ही विस्तार और अभिव्यक्ति है। हिंदू धर्म में स्त्री शिक्षा एवं स्वतंत्रता के प्रश्न को सदैव ही नकारा गया है|
दूसरी ओर शाहूजी महाराज, ज्योतिबा फुले ,सावित्रीबाई फुले, बाबासाहेब अंबेडकर जैसे महान बहुजन नायक स्त्री शिक्षा और उनके अधिकारों की शुरुआत के पक्षधर थे।
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