वे मार्क्सवाद को जाने बगैर बड़ी बेशर्मी से कहते हैं कि भारत में मार्क्सवाद लागू नहीं होता। सच्चाई यह है कि भारत में उनका जातिवाद लागू नहीं होता।
हर जाति में अमीर और गरीब हैं। अगर अमीरों का मुनाफा बढ़ाने के लिए मँहगाई बढ़ाते हैं तो मँहगाई से गरीबों की कमर टेढ़ी हो जाती है। मँहगाई के विरुद्ध विद्रोह करते हैं तो गरीबों के पक्ष में हो जाते है। इसी तरह बेरोजगारी से अमीरों का फायदा तो गरीबों का नुक़सान होता है। अपनी जाति के अमीरों का भला करते हैं तो उनकी जाति के गरीबों का बुरा हो जाता है। कोई भी जातिवादी संगठन अपनी जाति के अमीरों का भला करता है तो गरीबों का नुक़सान होता है, और गरीबों का भला करता है तो अमीरों का नुक़सान होता है। अत: कोई भी जातिवादी संगठन अपनी जाति के अमीर व गरीब दोनों का भला नहीं कर सकता। जातीय संगठन केवल गरीबों के बीच ही फूट डालकर उन्हें कमजोर करते हैं अमीर लोग तो जाति धर्म से ऊपर उठ कर आपस में मिले ही हुए हैं। अत: जातीय संगठन अपनी जाति का नहीं सिर्फ अमीरों का ही भला कर पाते हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हर जाति में अमीर और गरीब हैं, दोनों के हित परस्पर विरोधी हैं, इस लिए किसी भी जाति के संगठन अपनी पूरी जाति का पक्ष नहीं ले सकते हैं। इन अर्थों में अमीरों व गरीब में बंटे हुए समाज में जातिवाद लागू नहीं होता। जब कि मार्क्सवाद तो भूख का विज्ञान है, जहाँ- जहाँ भूख लगती वहाँ-वहाँ मार्क्सवाद लागू होता।
रजनीश भारती
जनवादी किसान सभा
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