मानवता करती चीत्कार प्रिय
इस पार भी है उस पार भी है
मजहवी उन्मादी उत्पात प्रिय
इस पार भी है उस पार भी है
इंसानी लहू का व्यापार प्रिय
इस पार भी है उस पार भी है।
भूख तो है और रोटी भी है
छत है और है बेघर भी
कपड़े हैं और हैं ठिठुरे भी
हस्पताल भी है बीमार भी है
इनका आपस मे मेल नहीं
क्योकि इनका व्यापार प्रिय
इस पार भी है उस पार भी है।
खेतों में कारखानों में
खदानों में औऱ जंगल मे
वही मसक्कत होती है
वही पसीने बहते हैं
जो तुम उधर बनाते हो
हम भी वही बनाते है
पर अपना अधिकार नहीं
अपना कारोबार नहीं
सारे तिजारतदार प्रिय
इस पार भी हैं उस पार भी हैं।
बेरोजगारों की कतार भी है
भूखों की जमात भी है
बेघर और बीमार भी हैं
मन्दिर मस्जिद गिरजे भी है
मजहब है उन्माद भी है
हम यूं ही बांटे जाते है
इन अफीमों का कारोबार प्रिय
इस पार भी है उस पर भी है।
सारे मसले एक से हैं
पर बांटे गए लकीरों से
हथियारों के जखीरों से
तोपों से बारूदों से
जंगों के तिजारतदारों से
क्योकि वही सियासतदान प्रिय
इस पार भी है उस पार भी है
लकीरों का व्यापार प्रिय
इस पार भी है उस पार भी है
ताबूतों का कारोबार प्रिय
इस पार भी है उस पार भी है
सरहद के पैरोकार प्रिय
इस पार भी है उस पार भी है।
विद्यानन्द
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