जाति प्रश्न को, सवर्ण और दलित जाति समूहों के बीच का सरल-साधारण प्रश्न समझना, भारी भूल होगी। दरअसल, जातियों के बीच सामाजिक सोपानों का, नीचे से ऊपर तक, एक समूचा, विशद क्रम मौजूद है।
हिन्दू मुस्लिम से छूत रखता है तो हिंदुओं के भीतर, चमार, पासी से, पासी, भंगी से, कोरी, कहार से, कहार, चमार से जातीय श्रेष्ठता का दावा करता है। मुस्लिमों के भीतर, अहमदी, देहलवी, बरेलवी ही जातीय श्रेष्ठता की इस जंग में नहीं उलझे हैं बल्कि उनके भी भीतर, सुन्नी खुद को, शियाओं से, श्रेष्ठ बताते हैं और उनके और भीतर, मंसूरी, मनिहार, अंसारी, कसाइयों, कसगरों, ढफालियों से, पठान इन सब से और सैयद पठानों से भी श्रेष्ठ होने का दावा करते हैं। कुल मिलाकर, ये सभी जातियां, एक ही साथ दलित और दलक, ऊंची और नीची, शोषक और शोषित, दोनों हैं।
इस जाति श्रेष्ठता के विरुद्ध, हमारा संघर्ष, सर्वहारा के वर्ग-संघर्ष का अभिन्न अंग है, जिसे वर्ग-संघर्ष के अन्तर्राष्ट्रीय आधार से इतर, किसी भी अन्य आधार पर नहीं चलाया जा सकता।
Workers' Socialist Party
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