Tuesday, 22 February 2022

निदाफ़ाज़ली साहब के ये शेर गौर तलब हैं


हर बार ये  इल्ज़ाम रह गया..!
हर काम में कोई  काम रह गया..!!
नमाज़ी उठ उठ कर चले गये मस्ज़िदों से..!
दहशतगरों के हाथ में इस्लाम रह गया..!!

खून किसी का भी गिरे यहां 
नस्ल-ए-आदम का खून है आखिर
बच्चे सरहद पार के ही सही 
किसी की छाती का सुकून है आखिर

ख़ून के नापाक ये धब्बे, ख़ुदा से कैसे छिपाओगे ? 
मासूमों के क़ब्र पर चढ़कर, कौन से जन्नत जाओगे ?

दिलेरी का हरगिज़ हरगिज़ ये काम नहीं है
दहशत किसी मज़हब का पैगाम नहीं है ....!
तुम्हारी इबादत, तुम्हारा खुदा, तुम जानो..
हमें पक्का यकीन है ये कतई इस्लाम नहीं है....!!

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