महान चीनी लेखक और माओ त्से-तुंग के शब्दों में "चीन की सांस्कृतिक क्रान्ति के कमाण्डर-इन-चीफ़", लू शुन के जन्म दिवस (25 सितम्बर, 1881) के अवसर पर
"मेरे दृष्टिकोण से, "वामपंथी" लेखकों का "दक्षिणपंथी" लेखकों में बदल जाना आज बहुत आसान है। सबसे पहली बात तो यह है कि, अगर आप वास्तविक सामाजिक संघर्षों से सम्पर्क बनाये रखने के बजाय काँच की खिड़कियों के पीछे बन्द होकर लिखने या पढ़ने बैठ जाते हैं, तो यह आपके लिए आसान है कि आप अत्यन्त रैडिकल या "वामपंथी" बन जायें। लेकिन जिस क्षण आप यथार्थ के सामने पड़ते हैं, तब आपके सभी विचार भहराकर गिर जाते हैं। बन्द दरवाज़ों के पीछे बैठकर रैडिकल विचारों का फौव्वारा छोड़ना बहुत आसान है, लेकिन उतना ही आसान है "दक्षिणपंथी" बन जाना। इसे ही पश्चिमी देशों में "बैठकख़ाना-समाजवादी" कहते हैं। बैठकख़ाना बैठने का एक कमरा होता है और इसमें बैठकर समाजवाद पर बहस करना बहुत कलात्मक और सुरुचिपूर्ण लगता है। इस तरह के समाजवादी बिल्कुल अविश्वसनीय होते हैं।"
— लू शुन ('दक्षिणपंथी लेखकों के लीग पर विचार' से)
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