Thursday, 23 December 2021

15 अगस्त 1947 स्वतंत्रता दिवस या भारत विभाजन दिवस

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1857 भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 15 अगस्त 1947 तक भारत की जनता ने अभूतपूर्व शहादत के साथ संर्घष किया था। क्रान्तिकारियों ने बलिदान और कुर्बानी की परम्परा कायम किया था। हजारों लोग फांसी के फन्दे पर चढ़ गये थे। लाखों गोलियों से भून दिये गये थे। करोड़ों लोग बारा-बार जन आन्दोलनों के दौरान जेल गये यातनायें सहे, तब जाकर 15 अगस्त 1947 के दिन ब्रिटिश साम्राज्यवाद हारकर भारत छोड़ने के लिए बाध्य हुआ था। लेकिन अपनी पूंजी सुरक्षित करने के लिए भारत के दलाल पूंजीपतियों के साथ एक समझौता किया जिसके तहत अपने चहेतों को सत्ता सौंप कर भारत भारत के दो टुकड़े कर दिया। अत: जिसे आज हम स्वतंत्रता दिवस के रूप में याद करते हैं दरअसल वह भारत का विभाजन दिवस है। 
    
भारत के विभाजन का प्रस्ताव- 10 जुलाई 1947 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने पारित किया था। पंडित नेहरू द्वारा लिखित, सरदार पटेल द्वारा समर्थित और गान्धी जी द्वारा अनुमोदित था। क्या कहीं कोई देश भक्त अपने देश के विभाजन के लिए प्रस्ताव पारित करता है। ऐसी तथा कथित आजादी विश्व इतिहास में नहीं मिलता है। जो बेमिशाल है। जहाँ गुलाम बनाने वाली ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति का प्रतिनिधि वायसराय माउन्टबेटन ही सत्ता हस्तान्तरण के लगभग 10 महीने बाद तक भारत का वायसराय बना रहा। 
    
यह सत्ता हस्तान्तरण पूरी तरह से भारत की जनता के खून से डूबी हुयी थी। जहाँ 14 अगस्त 1947 तक भारत का जो हिन्दू और मुसलमान आपस में मिलकर अंग्रेजो से लड़ते थे वे ही अब तथा कथित आजादी के कारण पूरे देश व्यापी पैमाने पर एक दूसरे का खून बहाने लगे। इधर 15 अगस्त 1947 से 17 अगस्त 1947 तक 3 दिन तक भारत के लोगों को पता नहीं था कि वे हिन्दुस्तान में है या पाकिस्तान में है। उधर सत्ताधारी अंग्रेजों ने जान बूझकर साम्प्रदायिक दंगा करवाया था। परिणामस्वरूप 3 दिनों में 10 लाख से अधिक लोग साम्प्रदायिक दंगों में मारे गये। एक करोड़ लोगे अपने देश में शरणार्थी बनकर रह गये। एक करोड लोग अपने देश में शरणार्थी बनकर एक कोने से दूसरे कोने तक अपनी जान बचाने के लिए दौड़ भाग करते रहे। अरबों-खरबों की पूंजी सम्पत्ति और धन देश की जनता का बरबाद हुआ। इसके लिए जिम्मेदार गद्दार दलाल पूॅजीवादी नेताओं को सजा मिलनी चाहिए थी किन्तु 14 अगस्त की रात्रि ने उन्हे गद्दारी का इनाम मिला। और सत्तारूढ हो गये। नेहरू पटेल भारत के प्रधानमंत्री और उपप्रधान मंत्री बनकर सरकार चलाने लगे, उधर जिन्ना साहब पाकिस्तान का गर्वनर जनरल बन गये, यद्यपि देश के मालिक भारत की जनता ने इन दोनों को सत्ता नहीं सौंपी। भारत जो पूरा सामंती और पूरा औपनिवेशिक देश थ वह अर्द्ध सामंती, कर अर्धऔपनिवेशिक में बदल गया तथा पूँजीवादी व्यवस्था कायम हो गयी। सत्ता हस्तान्तरण के बाद ब्रिटिश राजसत्ता और व्यवस्था सेना, पुलिस, नौकरशाही, ब्रिटिश का ही कानून कायदे सत्ता और व्यवस्था का पुराना ढांचा ब्रिटिश पूंजी की सत्ता ज्यों की त्यों आज भी कायम है। बहु चर्चित आजादी आधी-अधूरी आजादी है यह मात्र सत्ता का ही हस्तान्तरण है जो पूजीवादी व्यवस्था की नीव है। चूंकि भारत के पूॅजीवादी व्यवस्था की नीव पड़ चुकी थी, वर्ग संघर्ष का रास्ता छोड़कर चुनाव वोट का रास्ता अपना लिए गये, परिणामस्वरूप 74 वर्षों में एक तरफ मेहनतकश जनता के विरूद्ध लाठी, गोली, जेल, कचेहरी निर्मम शासन जारी है। दूसरी तरफ हर चुनाव लोकतांत्रिक नाटक के बाद मंहगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, बीमारी, कुशिक्षा, बेकारी, हत्या, बलात्कार बढ़ती जा रही है। अमीर अमीर होता जा रहा है, गरीब गरीब होता जा रहा है। देश में पूजीपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा क्यों है, विचारणीय प्रश्न है? भारत की संसदीय प्रणाली (लोकतंत्र) जिसे जनतंत्र भी कहा जाता है। झूठ बोलने और जनता को धोखा देने का हथियार बन गया है। झूठ बोलने का पक्का सबूत आगे है। 
    
राजनीति अर्थनीति की धुरी है। अर्थनीति का चक्कर राजनीति लगाती है। आर्थिक दरिद्रता के कारण वर्तमान समय में समाज में राजनैतिक दरिद्रता छा गयी है। विचारधारा और सिद्धान्त की राजनीति खत्म हो गयी है, निजी स्वार्थ के लिए दल-बदल आम बात हो गयी है। चूँकि पूॅजीवादी व्यवस्था पर आधारित है। जिसके पास बहुतेरे हथकंडे है झूठ बोलना, गलत वादा करना, जनता को धोखा देना चुनाव के दौरान शराब, कपड़ा, पैसा तथा अनेक वादा करना और हर तरह से तिकड़म करके चुनाव जीतना असली कार्य है। और यह चरित्र सारी पूजीवादी पार्टियों की है। सबका चरित्र और सिद्धान्त एक जैसा है। सारी पूजीवादी पार्टियां कितना झूठ बोलती है और किया गया वादा पूरा नहीं किया। उसका नमूना नीचे है। 
1- सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा 1977 में श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में दिया गया जिसमें भ्रष्टाचार बेरोजगारी, बेकारी, कुशिक्षा समाप्त होगी और शोषण मुक्त समाज बनेगा। मगर जनता पार्टी का शासन आया एक भी वादे पूरे नहीं हुए। इसी तरह-
2- हर हाथ को काम, हर खेत को पानी, का नारा (कांग्रेस का)
3- जय जवान जय किसान का नारा (कांग्रेस का)
4- गरीबी मिटाओ का नारा (कांग्रेस का)
5- बैंको का राष्ट्रीयकरण का नारा(कांग्रेस का)
6- भूख भय और भ्रष्टाचार मिटाओ (भाजपा का)
7-शाइनिंग इण्डिया का नारा (भाजपा का)
8- अच्छा दिन आयेगा, मंदिर वहीं बनायेंगे, सबका साथ सबका विकास (भाजपा का)
9- विदेशों में जमा धन सत्ता में आने के बाद 90 दिन में 15-15 लाख प्रत्येक परिवार को दिया जायेगा (भाजपा का)
10- भाजपा ने वादा किया था प्रतिवर्ष 2 करोड नौकरियां देंगे परन्तु नोट बंदी, जी0एस0टी0 निजीकरण आदि के जरिये 22 करोड़ नौकरियां छीन लिया। 
11- भाजपा ने वादा किया था कि मंहगाई रोकेंगे लेकिन सारी चीजों का मंहगायी के दाम आसमान छू रहा है, डीजल, पेट्रोल का गैस खाद-बीज आदि के दाम लगातार बढ़ती जा रही है। फिर भी कहते हैं कि किसानों के आय 2022 तक दो गुना हो जायेगा। 
12- भाजपा ने वादा किया गया था भ्रष्टाचार रोकेंगे लेकिन नोटबन्दी के रूप में विश्व इतिहास का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार कर डाला। 
13- भाजपा ने वादा किया था महिलाओं की सुरक्षा, बेटी-पढाओं, बेटी बचाओं का नारा दिया था मगर आज सांसद महिला की रक्षा सांसद भवन में न हो सकी अब सांसद में क्या हो रहा है आप लोगों के सामने है। 
14-  मोदी जी देश में कोई कल कारखाना नहीं लगवाया बल्कि जो था वह भी बन्द हो गया जिसमें मजदूर काम करते उत्पादन बढ़ता और मजदूरों का जीवन स्तर ऊँचा उठता देश माला-माल हो जाता किन्तु उनके चुनावी क्षेत्र वाराणसी, पांच सितारा होटल तैयार हो रहा है। क्या उस होटल में मजदूर या किसान जायेगें।
   
यह कहा जाता है कि यह जनतंत्र है लोकतन्त्र है। क्योंकि जनता द्वारा चुने गये हैं। लेकिन भारत में जनतंत्र का मखौल उड़ा रहे हैं। मन की बात कहकर तानाशाही कर रहे हैं यानी जनतंत्र का खात्मा कर रहे हैं। इटली के मुसोलिनी और जर्मनी के हिटलर से भी आगे बढ़ गये हैं। 135 करोड़ देशवासियों से टी0वी0 चैनल पर संवाद करते हैं। गौर करने की बात है कि मोदी जी कहते थे कि मुझे देश का चौकीदार बना दीजिये। चौकीदार नहीं देशा का प्रधानमंत्री बना दिये लेकिन हीरा व्यापारी नीरव मोदी विदेश चला गया उसे पकड़ नहीं पाये और न ही उसे भारत बुला पाये और न ही विदेशो में जमा पूँजी मंगा पाये। कैसे चौकीदार निकले? इसके अतिरिक्त दूसरी तरफ मोदी जी पूजीपतियों के हाथ हवाई अड्डे रेलवे आदि को बेच रहे है। और अब देश बेचने वाले हैं। 

भारत में झूठ बोलने की आजादी को ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा जाता है। भारत का संसदीय लोकतंत्र इसी झूठ का नमूना है। आजदी के नाम पर उसे सिर्फ झूठे वादे धोखा विश्वासघात मिलता है। अत: जनता मांग करती है कि झूठ वाले करने वाले नेताओं के खिलाफ कानून बनाया जाय और सजा दिलाया जाय। कहते हैं 1952 के पूर्व जमीन के मालिक जमीन्दार या राजा-महाराजा हुआ करते थे किन्तु 1952 में तथाकथित जमीन्दारी टूटने के बाद जमीन किसानों को मिला जबकि अभी भी जमीन्दारी कायम है। भोजन, वस्त्र और मकान का सवाल जमीन से हल होगा जो आज तक नहीं हल हो सका। आजादी के पूर्व से ही जमीन के सवाल पर 1946 से 1952 तक तेलंगाना में हथियार बन्द किसानों का संघर्ष जमीन के लिए चल रहा था तब जाकर 1952 में जमीन्दारी आधी-अधूरी टूटी। आचार्य बिनोवा भावे भी भूमि सुधार आन्दोलन चलाये फिर भी जमीन का सवाल आज तक नहीं हल हुआ। 
  
आजादी की लड़ाई चल रही थी उसी समय 1946 से 1951 तक तेलंगाना में हथियार बन्द किसान संघर्ष जमीन के लिए चल रहा था। तेलंगाना किसान संघर्ष के ताप से डरकर 1952 में जमीन्दारी उन्मूलन कानून लागू हुआ। मगर भूमिहीन व गरीब किसानों को जमीन नहीं मिली। तभी तो जमीन के लिए, नक्सलवादी किसान आन्दोलन तिभागा, छतहरा, कुडवा मानिकपुर आदि तमाम जगहों पर किसान आन्दोलन कुछ किसानों को जमीन मिली। क्योंकि 1952 के पहले जमीन का मलिक राजा राजवाडे, जमीन्दार होते थे, जो अंग्रेजों के दलाल थे। किसान लगान जमीन्दार को देता था किन्तु जमीन्दारी उन्मूलन के बाद जो किसान माल गुजारी का 10 गुना जमा करके जमीन का मालिक बन गया। किन्तु आज भी जमीन का अधिकांश हिस्सा जमीन्दारों के पास रह गया। वह आज भी ज्यों का त्यो है। नक्सलवाड़ी के ताप से डरकर देश में सीलिंग एक्ट 1975 में लागू हुआ पुनः परिणाम स्वरूप जमीन को पट्टा देने का कार्य सरकार ने शुरू कर दिया। किन्तु जमीन का सवाल अभी अधूरा है जमीन्दारों के नाम आज भी जमीन का निर्णायक हिस्सा पड़ा हुआ है। 
    
भोजन, वस्त्र और मकान का निदान समाधान जमीन ही है। लेकिन मोदी जी की सरकार आने पर किसान विरोधी नीति जमीन अधिग्रहण अध्यादेश 2015 मे ही आ गयी है जिससे किसानों को जो मिली जमीन थी वह भी छीनना शुरू हो गया। तथाकथित आजादी 1947 के बाद लगभग 74 वर्षों में किसान आन्दोलन जो आज लगभग 8 महीनों से दिल्ली के निकट टिकरी बार्डर पर, गाजीपुर बार्डर पर चल रहा है। यह किसान विरोधी काला कानून जन विरोधी है क्योंकि किसानों की जमीन छीनकर पूँजीपतियों के हक में अदानी और अम्बानी के हाथ में गिरवी करने की साजिश है। इस साज़िश के खिलाफ गर्मी बरसात, भयंकर ठंडक, एवं भयंकर कोरोना महामारी से जूझते हुए किसान संघर्षरत हैं। उनमें से 600से अधिक किसानों की मौत भी हो गयी, लेकिन तानाशाह मोदी को केवल पूजीपति ही दिखायी दे रहे हैं। ऐसे वीर सपूत किसानों को मेरा लाल सलाम एवं उन आन्दोलन कारियों को मै शत-शत नमन करता हूँ तथा वंदन एवं अभिनन्दन करता हूँ और मैं आपके साथ हूँ।
    
आइये इन परिस्थितियों में हम अपना सम्पूर्ण आजादी के लिए नया भारत बनाने के लिए जन आन्दोलन के माध्यम से क्रान्ति का बिगुल बजायें। *-इन्कलाब जिन्दाबाद!!*
  
*क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ-*
*सूर्यदेव सिंह एडवोकेट(बस्ती)*
*जनवादी अधिवक्ता संघ*

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