Saturday, 27 November 2021

दलितों पर बढ़ते हमलों का मुंहतोड़ जवाब दो!

इलाहाबाद के फाफामऊ के गोहरी गांव में पासी(दलित) जाति के एक ही परिवार के चार लोगों की ठाकुर जाति के दबंगों द्वारा निर्मम हत्या के विरोध में इंक़लाबी छात्र मोर्चा का बयान- 

दलितों पर बढ़ते हमलों का मुंहतोड़ जवाब दो!

दलित आंदोलन को संसदीय- सुधारवादी दलदल से बाहर निकालो और क्रांतिकारी दिशा दो!! 

अभी 26 नवंबर 2021 को इस देश के दलित बुद्धिजीवी संविधान निर्माण का जश्न मना ही रहे थे तभी इलाहाबाद के फाफामऊ के गोहरी गांव में पासी जाति से संबंध रखने वाले एक पूरे परिवार को ही सामंती ठाकुरों द्वारा धारदार हथियारों से कत्ल कर दिया गया और उस परिवार की एक 17 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ हत्या करने से पहले बलात्कार भी की गई। कुल चार लोगों को उनके घर में घुसकर धारदार हथियारों से काट डाला गया। यह घटना संभवतः 24 नवंबर की रात में हुई है और अगले दिन 25 तारीख को गांव वालों को पता चला। यह परिवार एक गरीब किसान वर्ग से आता है। जो गांव से थोड़ी दूर पर मिट्टी का एक घर और झोपड़ी बनाकर रहते थे। पिछले 2 सालों से ठाकुरों के साथ इनका विवाद चल रहा था। विवाद की शुरुआत आये दिन ठाकुरों द्वारा इन गरीब किसानों की फसल चरा देने से हुई थी। जिसका पुलिस में शिकायत करने पर 2 साल पहले भी इस परिवार पर हमला किया गया था। बाद में SC- ST एक्ट के तहत मुकदमा भी दर्ज हुआ था लेकिन एक भी दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया गया। अभी दो महीने पहले एक बार फिर ठाकुर लोग इन लोगों के घर में घुसकर इनको लाठी डंडे से मारे थे जिसमें कुछ लोगों का सर भी फुट गया था। पीड़ित दलित परिवार द्वारा मामले का एफआईआर भी दर्ज कराया गया लेकिन कोई कार्यवाई नहीं हुई।

इस घटना से संबंधित जो रिपोर्टें आ रही हैं उनसे यह स्पष्ट है कि इस घटना की वजह ठाकुरों का सामंती- जातिवादी सोच- श्रेष्ठताबोध व पीड़ितों का दलित जाति का होना है। ठाकुर परिवार को यह बर्दाश्त ही नहीं हुआ कि कोई पासी(दलित) कैसे उनसे आंख मिला सकता है और उनके खिलाफ सर उठाकर खड़ा हो सकता है। आखिर एक जातिविशेष से जुड़े लोगों के अंदर इतनी हिम्मत कहाँ से आती है कि वो पूरे के पूरे दलित परिवार को ही काट कर मार डाले? 

इंक़लाबी छात्र मोर्चा का मानना है कि यह हिम्मत इसलिए आती है कि उन्हें पता है कि सत्ता और व्यवस्था के सारे केंद्रों पर उनके जाति- वर्ग के लोग बैठे हुए हैं। और वो ये भी जानते है कि दलितों के अंदर इतनी ताकत नहीं है कि वो इनका जवाब दे सकें। ज्यादा से ज्यादा वो कोर्ट- कचहरियों का चक्कर लगाएंगे फिर थक हारकर अपने रोजी- रोटी के जुगाड़ में लग जाएंगे। उनके बुद्धिजीवी रोती- गिड़गिड़ाती हुई कुछ कविताएं और कहानियां लिखकर अपना गुस्सा शांत का लेंगे और इनके नेताओं का क्या है उन्हें तो कभी भी विधानसभा की एक शीट देकर खरीदा जा सकता है। इस घटना में भी  पुलिस- प्रशासन का ठाकुरों से मिलीभगत साफ जाहिर है। इस ठाकुर परिवार का शासन और प्रशासन में अंदर तक पकड़ है। उन्हें पता है कि अंततः उनके साथ होना कुछ नहीं है। ज्यादा से ज्यादा कुछ दिन की गिरफ्तारी होगी, जेल में मेहमानों की तरह आवभगत होगी और फिर सबूतों के अभाव में सब बरी हो जाएंगे। 

‌अभी हाल ही में 'जय भीम' फ़िल्म की बुद्धिजीवी दायरे में काफी तारीफ की गई। एक लिहाज से यह फ़िल्म बहुत ही घटिया है क्योंकि यह अन्ततः दलितों- शोषितों के अंदर इस सड़ी- गली व्यवस्था के प्रति विश्वास और श्रद्धा पैदा करती है। गोहरी की यह घटना कोई पहली घटना नहीं है। इसके पहले भी बिहार और देश के अन्य राज्यों में भी दलितों के जनसंहार की ऐसी और इससे बड़ी तमाम घटनाएं घटती रही हैं। जिनमें से एक में भी दलितों को इंसाफ नहीं मिला और हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि गोहनी गांव के इस घटना में भी दलितों को कोई इंसाफ नहीं मिलेगा। इसके लिए हम कुछ उदाहरण आपके सामने रख रहे हैं बिहार के बथानीटोला में रणवीर सेना द्वारा 21 दलितों की हत्या कर दी गयी सेशन कोर्ट ने तीन को मौत की सजा दी और 20 को आजीवन कारावास लेकिन पटना हाई कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में सभी दोषियों को बाइज्जत बरी कर दिया। बिहार के ही लक्ष्मणपुर बाथे जनसंहार में 58 दलितों की निर्मम हत्या की गई और सभी दोषियों को हाई कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। बिहार सहित पूरे देश में दलितों के साथ जनसंहार के ऐसे अनगिनत मामले हैं जिसमें दोषियों को सजा नहीं हुई। कुछ दिन वे जेल में रहे। फिर जमानत पर बाहर आ गए और अंततः बरी कर दिए गए।

सच बात तो यह है कि इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था ने बाबा साहेब अंबेडकर को मात्र संविधान निर्माता के रूप में प्रचारित कर दलितों के पढ़े- लिखे और व्हाइट कॉलर वर्ग को अपने अंदर समायोजित कर लिया है। इन 5% व्हाइट कॉलर दलितों का इस्तेमाल यह ब्राम्हणवादी व्यस्था भयानक शोषण- उत्पीड़न और और जुल्म की शिकार दलित जनता के आक्रोश और उनके जेहन में धधक रहे आग को ठंढा करने के लिए करती है। दलित आंदोलन के भीतर का सुधारवाद और अवसरवाद दलितों पर जुल्म के लिए उतना ही जिम्मेदार है जितने कि यह ब्राह्मणवादी- सामंती लोग और व्यवस्था।

अगर हमें दलितों के ऊपर जुल्म और दमन को कमजोर करना है, उनके साथ हुए जुल्मों और जन संहारों का जवाब देना है तो हमें बिहार के क्रांतिकारी आंदोलनों से सीखना होगा कि किस तरह नक्सलवादी- क्रांतिकारी पार्टियों और संगठनों ने पूरे बिहार से सवर्ण- सामंती ताकतों व उनकी रणवीर सेना को उन्हीं की भाषा में जवाब देते हुए नेस्तनाबूद कर दिया। हालांकि अभी भी वहां सामंती व्यवस्था को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सका है और लड़ाई आज भी जारी है।

दलितों को अगर जातीय उत्पीड़न व ब्राह्मणवादी- सामंती जुल्मों से मुक्ति पानी है तो संसदीय- सुधारवादी दलदल से बाहर निकलना होगा और एकताबद्ध होकर हत्यारों का उन्हीं की भाषा में मुंहतोड़ जवाब देने के लिए संगठित होना होगा। यह सब तभी सम्भव होगा जब वो सुधारवादी रास्ते को छोड़कर क्रांतिकारी रास्ते पर चलना शुरू करेंगे।

                                                  कार्यकारिणी
                                            इंक़लाबी छात्र मोर्चा
                                                   इलाहाबाद
                                                 27/11/2021

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