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अगर मैं कहूँ कि
मुझे आजादी का जश्न
नहीं मनाना
तो शायद मुझे भी
देशद्रोही की संज्ञा
दे दी जाएगी
पर जब मैं जश्न की बात सोचूँ
चंद सम्पन्न लोगों को छोड़
बाकी जनता के तंगहाल चेहरे
नजर आने लगते हैं
नजर आने लगती हैं कुछ तस्वीर
एक बड़े अस्पताल के सामने
कंधे पर लाश ढोती
जनता की तस्वीर
स्टेशन पर मरी माँ के कपड़े खींचते
मासूम बच्चे की तस्वीर
जंगल के पास
सुरक्षा बलों की गोली खाकर
पड़े बेगुनाह के लाश की तस्वीर
और उसके चारों ओर माहौल में छाए
भयावहकता की तस्वीर
जल जंगल जमीन की रक्षा के लिए
बंदूक कें निशाने पर
आंदोलित जनता की तस्वीर
अपने हक अधिकार के आंदोलन में
शहीद हो गए किसानों की तस्वीर
समझ में नहीं आता
किस किस तस्वीर को
उकेरूँ यहाँ
क्योंकि अनगिनत संख्याओं में
हैं ये जमीनी तस्वीर
जिनकी होती रहती है पूनरावृत्ति
इसलिए चाहे कुछ भी कह दो
जब तक जनता
कैद रहेगी इन तस्वीरों में
मुझे आजादी का जश्न
नहीं मनाना.
इलिका
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