मेरे दोस्तों!
तुम मौत को नहीं पहचानते..
चाहे वह आदमी की हो
या किसी देश की
चाहे वह समय की हो
या किसी वेश की
सब कुछ धीरे धीरे ही होता है
धीरे धीरे ही बोतलें ख़ाली होती हैं
गिलास भरता है
धीरे धीरे ही
आत्मा ख़ाली होती है
आदमी मरता है!
— सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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