Monday, 24 May 2021

लैंग्स्टन ह्यूज़ की (कविता) रचना 'माँ बेटे से'

 कॉमरेड अमर नदीम  द्वारा अनूदित लैंग्स्टन ह्यूज़ की रचना 'माँ बेटे से' :

तो सुनो बेटे :
जीवन मेरे लिए कोई सुन्दर-सरल जीना नहीं रहा
कई उभरी हुई नुकीली कीलें थीं इसमें
और चुभने वाली खपच्चियाँ
और फटे हुए तख़्ते,
और जगह-जगह बिना दरी का नंगा फ़र्श।

पर फिर भी हमेशा ही
यह एक चढ़ाई रही ऊपर की दिशा में
पाट पर पहुँचती हुई,
और कोनों पर मुड़ती हुई
और कभी उस अन्धेरे से गुज़रती हुई
जहाँ कोई रोशनी नहीं होती थी।

सो बेटे, पीछे मत मुड़ जाना
न ही ठहर जाना सीढ़ियों पर
सिर्फ़ इसलिए कि ये तुम्हें ज़रा मुश्किल लगता है।
अभी रुक मत जाओ
क्योंकि बेटा अभी तो यह सफ़र बाक़ी है
अभी तो और भी चढ़ाई है।

हाँ, जीवन मेरे लिए कोई सुन्दर-सरल जीना नहीं रहा।

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