किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं , यह समझने के लिए शिमला जाइए ।
शिमला में सेब के बाग है और किसानो से छोटे छोटे व्यापारी सेब ख़रीदकर देश भर में भेजते थे । व्यापारियों के छोटे छोटे गोदाम थे । अड़ानी की नज़र इस कारोबार पर पड़ी । हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार है तो अड़ानी को वहाँ ज़मीन लेने और बाक़ी काग़ज़ी कार्यवाही में कोई दिक़्क़त नहीं आयी । अड़ानी ने वहाँ पर बड़े बड़े गोदाम बनाए जो व्यापारियों के गोदाम से हज़ारों गुना बड़े थे ।
अब अड़ानी ने सेब ख़रीदना शुरू किया , छोटे व्यापारी जो सेब किसानो से 20 रुपय किलो के भाव से ख़रीदते थे, अड़ानी ने वो सेब 22 रुपय किलो ख़रीदा । अगले साल अड़ानी ने रेट बढ़ाकर 23 रुपय किलो कर दिया । अब छोटे व्यापारी वहाँ ख़त्म हो गए , अड़ानी से कम्पीट करना किसी के बस का नहीं था । जब वहाँ अड़ानी का एकाधिकार हो गया तो तो तीसरे साल अड़ानी ने सेब का भाव 6 रुपय किलो कर दिया ।
अब छोटा व्यापारी वहाँ बचा नहीं था , किसान की मजबूरी थी कि वो अड़ानी को 6 रुपय किलो में सेब बेचे ।
टेलिकॉम इंडस्ट्री की मिसाल भी आपके सामने हैं । कांग्रेस की सरकार में 25 से ज़्यादा सर्विस प्रवाइडर थे । JIO ने फ़्री कॉलिंग , फ़्री डेटा देकर सबको समाप्त कर दिया । आज केवल तीन सर्विस प्रवाइडर ही बचे हैं और बाक़ी दो भी अंतिम साँसे गिन रहे हैं ।
कृषि बिल अगर लागू हो गया तो गेन्हु , चावल और दूसरे कृषि उत्पाद का भी यही होगा । पहले दाम बढ़ाकर वो छोटे व्यापारियों को ख़त्म करेंगे और फिर मनमर्ज़ी रेट पर किसान की उपज ख़रीदेंगे । जब उपज केवल अड़ानी जैसे लोगों के पास ही होगी तो मार्केट में इनकी मनॉपली होगी और बेचेंगे भी यह अपने रेट पर । अब सेब की महंगाई तो आप बर्दाश्त कर सकते हो क्यूँकि उसको खाए बिना आपका काम चल सकता है लेकिन रोटी और चावल तो हर आदमी को चाहिए ।
अभी भी वक्त है , जाग जाइए , किसान केवल अपनी नहीं आपकी भी लड़ाई लड़ रहा है ।
— Shishupal Singh
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