तारीख
पंचांग में फंसा अंक नहीं
न वक्त घड़ी की सूइयों का
ज़रखरीद गुलाम
इनके वजूद की खातिर
सूरज को जलना पड़ता है
चलना पड़ता है पृथ्वी को
अनंत अनजान पथपर
अनवरत
ऐसे में कोई साल
लेटे लेटे या बैठे बैठे
नया हो जाए
बड़ी ख़ूबसूरत ख़ुशफहमी है
जो खोए हैं
उन्हें ख़ुशफ़हमी मुबारक
जो तैयार हैं
ख़ुद को खोने
और जग को पाने के लिए
उनके साथ मिलकर
चलो बनाते हैं
मनाते नहीं
एक नया कोरा महकता
इज़्ज़तदार साल
सिर उठाकर
मुट्ठियां तानकर
मुस्कुराते हुए
सिर्फ अपने लिए नहीं
पूरी कायनात के लिए
और निर्मल निश्छल निर्भय मन से
सबसे कहते हैं
यह नया साल मुबारक हो
हम सबको
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