Wednesday, 4 November 2020

फ़हमीदा रियाज़ की कविता

फ़हमीदा रियाज़ पाकिस्तान की प्रसिद्ध कवियत्री थीं। वे अपनी आखिरी दम तक पाकिस्तान में कट्टरपंथियों से लड़ती रहीं। जेल/देश निकाला जैसे अत्याचारों को सहती रहीं। वारली आदिवासियों के अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व करने वाली कॉमरेड गोदावरी पारुलेकर पर उन्होंने गोदावरी नाम से उपन्यास भी लिखा। जब भारत में कट्टरपंथियों की ताकत बढ़ने लगी, तब उन्होंने बहुत सुंदर नज़्म लिखी। वह नज़्म प्रसंगवश यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। दुनिया के सारे कट्टरपंथी चाहे वे किसी भी धर्म/संप्रदाय के हों, हिंसा ही उनका अंतिम हथियार है। इस हिंसा की हमेशा भर्त्सना होनी चाहिए।
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तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले
अब तक कहाँ छिपे थे भाई
वो मूरखता, वो घामड़पन
जिसमें हमने सदी गंवाई
आखिर पहुँची द्वार तुम्‍हारे
अरे बधाई, बहुत बधाई।

प्रेत धर्म का नाच रहा है
कायम हिंदू राज करोगे ?
सारे उल्‍टे काज करोगे !
अपना चमन ताराज़ करोगे !

तुम भी बैठे करोगे सोचा
पूरी है वैसी तैयारी
कौन है हिंदू, कौन नहीं है
तुम भी करोगे फ़तवे जारी
होगा कठिन वहाँ भी जीना
दाँतों आ जाएगा पसीना
जैसी तैसी कटा करेगी
वहाँ भी सब की साँस घुटेगी
माथे पर सिंदूर की रेखा
कुछ भी नहीं पड़ोस से सीखा!

क्‍या हमने दुर्दशा बनाई
कुछ भी तुमको नजर न आयी?
कल दुख से सोचा करती थी
सोच के बहुत हँसी आज आयी
तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले
हम दो कौम नहीं थे भाई।
मश्‍क करो तुम, आ जाएगा
उल्‍टे पाँव चलते जाना
ध्‍यान न मन में दूजा आए
बस पीछे ही नजर जमाना
भाड़ में जाए शिक्षा-विक्षा
अब जाहिलपन के गुन गाना।

आगे गड्ढा है यह मत देखो
लाओ वापस, गया ज़माना
एक जाप सा करते जाओ
बारम्बार यही दोहराओ
कैसा वीर महान था भारत
कैसा आलीशान था-भारत
फिर तुम लोग पहुँच जाओगे
बस परलोक पहुँच जाओगे
हम तो हैं पहले से वहाँ पर
तुम भी समय निकालते रहना
अब जिस नरक में जाओ वहाँ से
चिट्ठी-विठ्ठी डालते रहना।
🟢
*फ़हमीदा रियाज़*

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