तो उन्होंने चुपचाप उस पर हमला किया
और उसे खींच ले गये;
इतना मुश्किल था उनका षडयन्त्र
कि सरकार ने दिन-दहाड़े
क़ानून और व्यवस्था के जिन प्रहरियों
के हाथ उसे सौंपा था
उनको पता तक नहीं चला।
और उन लोगों ने भय से काँपते हुए
उस चिथड़े-चिथड़े हुई लाश को देखा
तो सिर्फ़ यही कह सके-
"हत्यारे पता नहीं कौन थे?"
तो इसी तरह, मेरा यह देश
चुपचाप खींचा जा रहा है
नैतिक मौत की तरफ़
हत्या की तरफ़,
नक्कारे और तुरही बजाकर नहीं,
बल्कि यह हत्या की जा रही है
कुछ अँधेरे और कुछ उजाले में–
लुके-छिपे।
लेकिन जब लाश सामने नज़र आयेगी
तब इतिहास यह नहीं कह सकेगा कि
"हत्यारे पता नहीं कौन थे?"
No comments:
Post a Comment