Wednesday, 16 September 2020

'मजदूर वर्ग के राजनीतिक चेतना' लेनिन "क्या करें ?"

मजदूर वर्ग की चेतना उस वक्त तक सच्ची राजनीतिक चेतना नहीं बन सकती , जब तक कि मजदूरों को अत्याचार ,उत्पीड़न, हिंसा और अनाचार के सभी मामलों का जवाब देना , चाहे उनका संबंध किसी भी वर्ग से क्यों न हो , नहीं सिखाया जाता । और उनको सामाजिक-जनवादी दृष्टिकोण से जवाब देना चाहिए , न कि किसी और दृष्टिकोण से । आम मजदूरों की चेतना उस समय तक सच्ची वर्ग चेतना नहीं बन सकती , जब तक कि मजदूर ठोस और सामयिक(फ़ौरी) राजनीतिक तथ्यों और घटनाओं से दूसरे प्रत्येक सामाजिक वर्ग का उसके बौद्धिक , नैतिक एवं राजनीतिक जीवन की सभी अभिव्यक्तियों में अवलोकन करना नहीं सीखते , जब तक कि मजदूर आबादी के सभी वर्गों , स्तरों और समूहों के जीवन तथा कार्यों के सभी पहलुओं का भौतिकवादी विश्लेषण और भौतिकवादी मूल्यांकन व्यवहार में इस्तेमाल करना नहीं सीखते। जो लोग मजदूर वर्ग को अपना ध्यान , अवलोकन और चेतना पूर्णतया या मुख्यतया भी , केवल अपने पर केंद्रित करना सिखाते हैं , वे सामाजिक जनवादी नहीं हैं , क्योंकि मजदूर वर्ग के आत्मज्ञान का अटूट संबंध आधुनिक समाज के सभी वर्गों के बीच पारस्परिक संबंधों की मात्र पूर्णतः स्पष्ट सैद्धांतिक समझदारी से ही नहीं है , ज्यादा सही कहें तो , इतना सैद्धांतिक समझदारी से नहीं है , जितना कि राजनीतिक जीवन के अनुभव से प्राप्त व्यावहारिक समझदारी से  है । यही कारण है कि हमारे अर्थवादी जिस विचार का प्रचार करते हैं , यानी यह कि आर्थिक संघर्ष जनता को राजनीतिक आंदोलन में खींचने का तरीका है , जिसका सबसे अधिक व्यापक रूप में उपयोग किया जा सकता है , वह अपने व्यावहारिक महत्व में बहुत अधिक हानिकारक और घोर प्रतिक्रियावादी विचार है । सामाजिक जनवादी बनने के लिए जरूरी है कि मजदूर के दिमाग में जमींदार और पादरी , बड़े सरकारी अफसर और किसान , विद्यार्थी और आवारा आदमी की आर्थिक प्रकृति का और उनके सामाजिक तथा राजनीतिक गुणों का एक स्पष्ट चित्र हो । उसे इन लोगों के गुणों और अवगुणों को जानना चाहिए , उसे उन नारों और बारीक सूत्रों का मतलब समझना चाहिए , जिनकी आड़ में प्रत्येक वर्ग तथा प्रत्येक स्तर अपना स्वार्थ और अपने "दिल की बात" छुपाता है , उसे समझना चाहिए कि विभिन्न संस्थाएं तथा कानून किन स्वार्थों को और किस प्रकार व्यक्त करते हैं । परंतु यह "स्पष्ट चित्र" किसी किताब से नहीं मिल सकता : वह केवल उसके सजीव दृश्य प्रस्तुत करके तथा भंडाफोड़ करके हासिल हो सकता है , जो संबद्ध घड़ी में हमारे चारों ओर घटित हो रहा है , जिसके बारे में सभी अपने ढंग से , शायद फुसफुसाते हुए , बातें करते हैं , जो अमुक-अमुक घटनाओं में , अमुक-अमुक आंकड़ों में , अमुक-अमुक अदालती सजाओं , आदि , आदि में अभिव्यक्त होता है । जनता को क्रांतिकारी क्रियाशीलता का प्रशिक्षण देने की एक जरूरी और बुनियादी शर्त यह है कि इस प्रकार के सर्वांगीण राजनीतिक भंडाफोड़ किये जायें ।                                             --  लेनिन      "क्या करें ?"     1902

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