धूर्तता
जोन्स जानते थे कि संस्कृत ब्राह्मणों की भाषा नहीं है, अन्यथा अशिक्षित ब्राह्मण भी संस्कृत बोलते। यदि ब्राह्मण संस्कृत भाषा को लेकर आए थे तो क्षत्रिय और वैश्य कौन थे, और कहां से आए थे। यदि वर्ण विभाजन ईरान में ही हो गया था तो भी यह केवल ब्राह्मणों की नहीं समस्त वर्ण विभाजित हिंदू समाज की भाषा सिद्ध होती थी। यह सोचना तो उस समय दुष्कर था कि बोलियां संस्कृत से अधिक पुरानी हैं और उन्हीं में से किसी एक का उत्कर्ष किसी विशेष कारण से क्रमशः अन्य बोलियों में अधिकाधिक लोगों के बीच संपर्क भाषा बनने के क्रम में हुआ था जिसकी अनगढ़ताओं को दूर करते हुए एक मानक और परिष्कृत रूप देकर इसे संस्कृत बनाया गया था, यद्यपि ईरान के संदर्भ में उन्हें सुशिक्षितों और सामान्य बोलचाल की भाषा के अंतर का ज्ञान है: ''ऐसा प्रतीत होता है कि ईरान के महान साम्राज्य में दो भाषाएँ आम तौर पर प्रचलित थीं; एक दरबार की, जिसे तब दरी नाम दिया गया था, जो पारसी की एक परिष्कृत और सुरुचिपूर्ण बोली थी।''
[ two languages appear to have been generally prevalent in the great empire of Irān; that of the Court, thence named Deri, which was only a refined and elegant dialect of the Pārsi. ]
जिन लोगों ने स्थान और काल भेद से बोलचाल की संस्कृत में प्रचलित अनियमितताओं को नियमित व्यवस्थित किया था (पाणिनि इनमें अंतिम थे ) उन्होंने इस भाषा को और इसमें लिखित ज्ञान साहित्य पर एकाधिकार कर लिया था और शेष लोग उस अनगढ़ संपर्क भाषा का व्यवहार करते रहे जिनके विविध बोली क्षेत्रों में अपने विशिष्ट रूप बन गए। इनमें परिवर्तन होता रहा इसलिए इनके प्राचीनतम रूप का आज हम अनुमान भी नहीं कर सकते। संस्कृत के विद्वान भी सामाजिक व्यवहार के लिए उन्हीं का व्यवहार करने के बाध्य थे, इसलिए बोलियों और संस्कृत के बीच लेन-देन भी चलता रहा।
संस्कृत ब्राह्मणों की नहीं शिक्षितों की भाषा थी। फारसी की तरह इसके दो रूप थे - दरबारी और साहित्यिक (संस्कृत) और सामान्य बोलचाल की प्राकृत। प्राकृतों का प्रयोग नाटकों में अशिक्षितों - सेवकों और स्त्रियों की भाषा में हुआ और इसमें कुछ मौलिक लेखन भी हुआ, इसलिए इनका पता हमें है, पर तत्समय बोलियों का क्या रूप था यह जानने का कोई उपाय नहीं । पर नई तकनीकी शब्दावली (जो किसी चीज को गढ़ता है वही उसके लिए शब्द भी गढ़ता है, पजंजलि) ही नहीं इसका साहित्य भी संस्कृत में ग्रहण किया जाता रहा, अतः बोलियो ने संस्कृत को उससे अधिक प्रभावित किया है, जितना संस्कृत ने बोलियों को। शिक्षा और शास्त्रीय ज्ञान पर ब्राह्मणों ने एकाधिकार करके और भाषा को अधिक दुरूह बना कर सामान्य जीवन जीने वालों को ज्ञान के मामले में अपना उपजीवी बना लिया और आर्थिक दृष्टि से उनके उपजीवी बने रहे।
जोन्स को पक्का पता था कि संस्कृत भाषा ईरान से भारत में नहीं आई, अपितु भारत से ईरान पहुंची है और संस्कृत से निकटता रखने वाली ईरान की भाषाओं की स्थिति संस्कृत (वैदिक) की तुलना में वही है जो भारत में प्राकृतों और बोलियों की।
''[जब मैंने ज़ेंद की शब्दावली का उपयोग किया, तो मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि दस में से छह या सात शब्द शुद्ध संस्कृत के थे, और यहां तक कि उनकी कुछ विभक्तियां व्याकरण के नियमों से बनी थीं... कि अवेस्ता की भाषा कम से कम संस्कृत की एक बोली थी, जो शायद उसके लगभग उतनी ही करीब पड़ती थी जितनी प्राकृत, या अन्य भाषाएं जिनके बारे में हम जानते हैं कि वे दो हज़ार साल पहले भारत में बोली जाती थीं। इन सभी तथ्यों का अनिवार्य निष्कर्ष यह है कि फ़ारस की जिन सबसे पुरानी भाषाओं की खोज की जा सकती हे वे चाल्डिक और संस्कृत थीं, और जब वे बोलचाल की भाषा नहीं रह गईं, तो क्रमशः पहलवी और ज़ेंद उत्पन्न हुईं, फारसी या तो सीधे संस्कृत से निकली या ब्राह्मणों की बोली जेंद से।
[when I perused the Zend Glossary, I was inexpressibly surprised to find that six or seven words in ten were pure Sanscrit, and even some of their inflexions formed by rules of vyākaran… that the language Avesta was al least a dialect of Sanskrit, approaching perhaps as nearly to it as Prācrit, or other popular idioms that we know to have been spoken in India two thousand years ago. From all these facts it is a necessary consequence that the oldest discoverable languages of Persia were Chāldaic and Sanskrit, and when they ceased to be vernacular, the Pahlavi and Zend were deduced from them respectively, and the Pārsi either from Zend or immediately from the dialect of the Brahmans.]
''मैं आपको पूरे विश्वास से आश्वस्त कर सकता हूं कि सैकड़ों पारसी संज्ञाएं शुद्ध संस्कृत हैं, जिनमें कोई अन्य परिवर्तन नहीं है, जैसा कि भारत की कई भाषाओं या स्थानीय बोलियों में देखा जा सकता है; फ़ारसी की बहुत सी आदेशपरक क्रियाएं संस्कृत धातुएं हैं; और यहां तक कि फ़ारसी क्रिया के मूड और काल भी, जो बाकी सभी का मॉडल है, एक आसान और स्पष्ट सादृश्य द्वारा संस्कृत से घटित किए जा सकते है: इसलिए हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि पारसी को विभिन्न भारतीय बोलियों की तरह, ब्राह्मणों की भाषा से व्युत्पन्न किया गया था।''
[I can assure you with confidence, that hundreds of Pārsī nouns are pure Sanskrit with no other change than such as may be observed in the numerous bhāshās or vernacular dialects, of India; that very many Persian imperatives are the roots of Sanskrit verbs; and that even the moods and tenses of the Persian verb substantive, which is the model of all the rest, are deducible from the Sanskrit by an easy and clear analogy : we may hence conclude, that the Pārsl was derived, like the various Indian dialects, from the language of the Brāhmans];
जोन्स द्वारा जुटाए गए प्रमाणों की एक दूसरी कड़ी है, जातीय परंपरा की है:
''इस प्रकार स्पष्ट प्रमाणों और सीधे तर्कों से यह सिद्ध हो गया है कि ईरान में असीरियन, या पिशदादी, सरकार से बहुत पहले एक शक्तिशाली राजवंश स्थापित हो चुका था; यह सच है कि यह वास्तव में एक हिंदू राजवंश था, परंतु यदि कोई इसे कुषाण, कश या सीथियन कहना चाहता है, तो हम उनके नामों पर बहस में नहीं पड़ेंगे; यह कई शताब्दियों तक अस्तित्व में रहा, और इसका इतिहास उन हिंदुओं पर आधारित है, जिन्होंने अयोध्या और इंद्रप्रस्थ के राजवंशों की स्थापना की थी।''
[Thus has it been proved by clear evidence and plain reasoning, that a powerful monarchy was established in Iran long before the Assyrian, or Pishdādī, government; that it was in truth a Hindu monarchy, though, if any choose to call it Custan, Casdean, or Scythian, we shall not enter into a debate on mere names ; that it subsisted many centuries, and that its history has been ingrafted on that of the Hindus, who founded the monarchies of Ayddhyā and Indraprestha;]
सीधे तर्क और स्पष्ट प्रमाणों से जो सिद्ध होता है उसे जोंस अपने कयास से बिना किसी तर्क या प्रमाण के उलट देते हैं, क्योंकि यह उनकी जरूरत थी, ''पहले फ़ारसी साम्राज्य की भाषा संस्कृत की जननी थी, और परिणामस्वरूप ज़ेंद, और फ़ारसी, साथ ही ग्रीक, लैटिन और गाॅथिक की भी; कि असीरियनों की भाषा चाल्डिक और पहलवी की जनक थी, और प्राथमिक तातारी भाषा भी उसी साम्राज्य में प्रचलित थी। छठां वार्षिक व्याख्यान).
that the language of the first Persian empire was the mother of the Sanskrit, and consequently of the Zend, and Parsi, as well as of Greek, Latin, and Gothic; that the language of the Assyrians was the parent of Chaldaic and Pahlavi, and that the primary Tartarian language also had been current in the same empire . sixth An. Disc.
जो तथ्य उनकी जानकारी में था वह यह कि फारस में इस प्राचीन प्रतापी वंश की स्थापना करने वाले वहां मीदिया से पहुंचे थे यद्यपि जोन्स को इस बात का पता नहीं रहा हो सकता कि वे यह दावा भी करते थे कि उनके पूर्वज वहां भारत से पहुंचे थे।
we have no trace in history of their departure from their plains and forests till the invasion of the Medes, who, according to etymologists, were the sons of Madai.
वह तर्क देते हैं, ''ब्राह्मण कभी भी भारत से ईरान नहीं जा सकते थे, क्योंकि उनके सबसे पुराने और संप्रति प्रचलित कानूनों द्वारा उन्हें उस क्षेत्र को छोड़ने से स्पष्ट रूप से मना किया गया है, जिसमें वे आज भी निवास करते हैं; ...इसलिए, वे तीन नस्लें, जिनका हम पहले ही उल्लेख कर चुके हैं, (और तीन से अधिक हमें अभी तक नहीं मिले हैं) ईरान के अपने साझे देश से चले थे; और इस प्रकार मैं पूरे अधिकार से मानता हूं, कि सैक्सन क्रॉनिकल के अनुसार, ब्रिटेन के पहले निवासी आर्मेनिया से आए थे; जबकि एक बहुत ही विद्वान लेखक ने अपने सभी श्रमसाध्य शोधों के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि गॉथ या सीथियन फारस से आए थे; और एक अन्य पूरे दम-खम से दावा करता है कि आयरिश और पुराने ब्रितानी दोनों कैस्पियन तट से अलग-अलग आगे बढ़े।
[the Brāhnans could never have migrated from India to Irān, because they are expressly forbidden by their oldest existing laws to leave the region, which they inhabit at this day; …Tho three races, therefore, whom we have already mentioned, (and more 'than three we have not yet found) migrated from Iran, as from their common country; and thus the Saxon chronicle, I presume from good authority, brings the first inhabitants of Britain from Armenia ; while a late very learned writer concludes, after all his laborious researches, that the Goths or Scythians came from Persia; and another contends with great force, that both the Irish and old Britons proceeded severally from the borders of the Caspian]
यहां विलियम जॉन्स जानबूझकर घालमेल करते हैं, क्योंकि वह जानते हैं कि ईरान में ब्राह्मण नहीं गए थे, बल्कि उस पर एक प्रतापी राजा ने अधिकार किया था। वह संपर्कभाषा उन कुरुओं के माध्यम से गई थी जिन्होंने वहां अपना आधिपत्य स्थापित किया था। यदि पारंपरिक विश्वास को पूरक प्रमाण बनाना था तो विलियम जोन्स इस तथ्य से परिचित थे कि विश्वामित्र की नालायक संतानें शापवश निर्वासित होकर मध्यदेश से शेष भारतीय भूभाग और पश्चिम के दर्द, हूण, पारद, पल्लव आदि में पहुंच कर धर्मभ्रष्ट हो गई थीं। ये कथाएं अपने परिरक्षित रूप में विश्वसनीय नहीं हैं, पर इनके पीछे ठोस ऐतिहासिक सत्य है। हम इसकी विस्तृत व्याख्या यहां नहीं कर सकते, क्योंकि हम विलियम जोन्स की ज्ञान सीमा में वस्तुस्थिति की जांच कर रहे हैं। उन्हें इस भारतीय परंपरा का ज्ञान था। इसलिए वह यह छूट नहीं ले सकते थे कि जिस तरह यूरोप के घुमक्कड़ चारण जीवी हिमयुग के बाद उन क्षेत्रों से उत्तरी यूरोप में पहुंचे थे और इसलिए उनकी मौखिक परंपरा अविश्वसनीय नहीं है, पर उसी तर्क से भारत से उनका निष्कासन मध्येशिया की ओर हुआ था जो कश्यप ऋषि और कसों/शकों और कैस्पियन सागर के नामकरण में बचा रहा है। परंतु फारस पर संस्कृत भाषियों का प्रवेश मीदिया से बहुत बाद में भारत पर आई महान आपदा का परिणाम था जिसमें कुरू पांचाल प्रचंड प्राकृतिक प्रकोप के शिकार हुए थे और यहां के निवासियों को अपने क्षेत्र से पलायन करना पड़ा था। पूर्व की दिशा में गोतम राहूगण के नेतृत्व में विदेघ माधव के पलायन से हम परिचित है। उत्तर की दिशा में उनके प्रवास के विषय में हमें केवल इस बात से पता चलता है कि इसके बाद उदीच्य का उच्चारण आदर्श माना जाने लगता है। मधई या मीदिया पर और वहां से पास के देश फारस पर विस्तास्प के अधिकार की कहानी बहुत बाद की है। दक्षिण की ओर तटीय क्षेत्रों की ओर उनके प्रवास को समझाना कठिन है क्योंकि इन पर पहले से उनका अधिकार था और विदेश व्यापार के अड्डे बने थे। यहां हम केवल यह संकेत करना चाहेंगे कि लातिन ग्रीक आदि क्षेत्रों में संस्कृत का प्रवेश फारस से आगे जाने वाले उन जत्थों के माध्यम से नहीं हुआ था न उसका तंत्र इतना सीधा था। हम उस पर अपना समय गंवाना नहीं चाहेंगे, खासकर इसलिए कि इनमें से कुछ बातों का ज्ञान विलियम जोन्स को हो ही नहीं सकता था।
''अगर वे ठोस सिद्धांतों पर आधारित नहीं होते, तो एक दूसरे से अनभिज्ञ और अलग-अलग तरीकों से निकाले गए निष्कर्षों का ऐसा संयोग दुर्लभ माना था। इसलिए हम इस प्रस्ताव को दृढ़ता से स्थापित कर सकते हैं, कि ईरान, या फारस अपने व्यापकतम अर्थ में, जनसंख्या, ज्ञान, भाषाओं और कला का सच्चा केंद्र था; जो, केवल पश्चिम की ओर यात्रा करने वालों तक सीमित न था जैसा कि समान कारणों से दावा किया गया है यह पूर्व की ओर, और दुनिया के सभी क्षेत्रों में सभी दिशाओं में फैला था, जिसमें हिंदू जाति विभिन्न संप्रदायों के रूप में बस गई थी
[ a coincidence of conclusions from different media by persons wholly unconnected, which could scarce have happened, if they were not grounded on solid principles. We may therefore hold this proposition firmly established, that Irān, or Persia in its largest sense, was the true centre of population, of knowledge, of languages, and of arts ; which, instead of travelling westward only, as it has been fancifully supposed, or eastward, as might with equal reason have been asserted^ were expanded in all directions to all the regions of the world, in which the Hindu race had settled under various denominations: but, whether Asia has not produced other races of men, distinct from the Hindus, the Arabs, or the Tartars, or whether any apparent diversity may not have sprung from an intermixture of those three in different poportions, must be the subject of a future inquiry.
एक दूसरे से असंबद्ध विविध विद्वानों का कथन केवल यूरोप के विषय में हैं और इस सीमा तक ही अकाट्य हैं। हिम युग में उत्तरी यूरोप मनुष्य ही नहीं अन्य प्राणियों के लिए भी रहने योग्य न था। यूरोपीय जातियों के अपने अपने क्षेत्रोंं में पहुंचने की ये कथाएं उसी से संबंधित हैं। इसका भाषाओं पर लादा नहीं जा सकता। भारत उस समय स्वयं सबसे आकर्षक शरणस्थल बना हुआ था। इसलिए ऊष्म युग आने के बाद यहां शरण लेने वालों का बहिर्गमन हुआ। इसलिए यहां उन्होंने कई तरह के घालमेल किए, कुछ अज्ञानवश, कुछ जानबूझकर।