Tuesday, 30 June 2020

समाजवाद और धर्म -लेनिन

लेनिन (1905)

समाजवाद और धर्म
हस्ताक्षर : एन. लेनिन
नोवाया झिज्न, अंक 28, 3 दिसंबर, 1905
संग्रहीत रचनाएं, खंड 10, पृष्ठ 83-87

वर्तमान समाज पूर्ण रूप से जनसंख्या की एक अत्यंत नगण्य अल्पसंख्यक द्वारा, भूस्वामियों और पूँजीपतियों द्वारा, मज़दूर वर्ग के व्यापक अवाम के शोषण पर आधारित है। यह एक ग़ुलाम समाज है, क्योंकि "स्वतंत्र" मज़दूर जो जीवन भर पूँजीपजियों के लिए काम करते हैं, जीवन-यापन के केवल ऐसे साधनों के "अधिकारी" हैं जो मुनाफ़ा पैदा करने वाले ग़ुलामों को जीवित रखने के लिए, पूँजीवादी ग़ुलामी को सुरक्षित और क़ायम रखने के लिए बहुत ज़रूरी हैं।

मज़दूरों का आर्थिक उत्पीड़न अनिवार्यतः हर प्रकार के राजनीतिक उत्पीड़न और सामाजिक अपमान को जन्म देता है तथा आम जनता के आत्मिक और नैतिक जीवन को निम्न श्रेणी का और अन्धकारपूर्ण बनाना आवश्यक बना देता है। मज़दूर अपनी आर्थिक मुक्ति के संघर्ष के लिए न्यूनाधिक राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन जब तक पूँजी की सत्ता का उन्मूलन नहीं कर दिया जाता तब तक स्वतंत्रता की कोई भी मात्रा उन्हें दैन्य, बेकारी और उत्पीड़न से मुक्त नहीं कर सकती। धर्म बौद्धिक शोषण का एक रूप है जो हर जगह अवाम पर, जो दूसरों के लिए निरन्तर काम करने, अभाव और एकांतिकता से पहले से ही संत्रस्त रहते हैं, और भी बड़ा बोझ डाल देता है। शोषकों के विरुद्ध संघर्ष में शोषित वर्गों की निष्क्रियता मृत्यु के बाद अधिक सुखद जीवन में उनके विश्वास को अनिवार्य रूप से उसी प्रकार बल पहुँचाती है जिस प्रकार प्रकृति से संघर्ष में असभ्य जातियों की लाचारी देव, दानव, चमत्कार और ऐसी ही अन्य चीजों में विश्वास को जन्म देती है। जो लोग जीवन भर मशक्कत करते और अभावों में जीवन व्यतीत करते हैं, उन्हें धर्म इहलौकिक जीवन में विनम्र होने और धैर्य रखने की तथा परलोक सुख की आशा से सान्त्चना प्राप्त करने की शिक्षा देता है। लेकिन जो लोग दूसरों के श्रम पर जीवित रहते हैं उन्हें धर्म इहजीवन में दयालुता का व्यवहार करने की शिक्षा देता है, इस प्रकार उन्हें शोषक के रूप में अपने संपूर्ण अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करने का एक सस्ता नुस्ख़ा बता देता है और स्वर्ग में सुख का टिकट सस्ते दामों दे देता है। धर्म जनता के लिए अफीम है। धर्म एक प्रकार की आत्मिक शराब है जिसमें पूँजी के ग़ुलाम अपनी मानव प्रतिमा को, अपने थोड़े बहुत मानवोचित जीवन की माँग को, डुबा देते हैं।

लेकिन वह ग़ुलाम जो अपनी ग़ुलामी के प्रति सचेत हो चुका है और अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष में उठ खड़ा हुआ है, उसकी ग़ुलामी आधी उसी समय समाप्त हो चुकी होती है। आधुनिक वर्ग चेतन मजदूर, जो बड़े पैमाने के कारखाना-उद्योग द्वारा शिक्षित और शहरी जीवन के द्वारा प्रबुद्ध हो जाता है, नफरत के साथ धार्मिक पूर्वाग्रहों को त्याग देता है और स्वर्ग की चिन्ता पादरियों और पूँजीवादी धर्मांधों के लिए छोड़ कर अपने लिए इस धरती पर ही एक बेहतर जीवन प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। आज का सर्वहारा समाजवाद का पक्ष ग्रहण करता है जो धर्म के कोहरे के ख़िलाफ संघर्ष में विज्ञान का सहारा लेता है और मज़दूरों को इसी धरती पर बेहतर जीवन के लिए वर्तमान में संघर्ष के लिए एकजुट कर उन्हें मृत्यु के बाद के जीवन के विश्वास से मुक्ति दिलाता है।

धर्म को एक व्यक्तिगत मामला घोषित कर दिया जाना चाहिए। समाजवादी अक्सर धर्म के प्रति अपने दृष्टिकोण को इन्हीं शब्दों में व्यक्त करते हैं। लेकिन किसी भी प्रकार की ग़लतफहमी न हो, इसलिए इन शब्दों के अर्थ की बिल्कुल ठीक व्याख्या होनी चाहिए। हम माँग करते हैं कि जहाँ तक राज्य का सम्बन्ध है, धर्म को व्यक्तिगत मामला मानना चाहिए। लेकिन जहाँ तक हमारी पार्टी का सवाल है, हम किसी भी प्रकार धर्म को व्यक्तिगत मामला नहीं मानते। धर्म से राज्य का कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए और धार्मिक सोसायटियों का सरकार की सत्ता से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रहना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को यह पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए कि वह जिसे चाहे उस धर्म को माने, या चाहे तो कोई भी धर्म न माने, अर्थात नास्तिक हो, जो नियमतः हर समाजवादी समाज होता है। नागरिकों में धार्मिक विश्वास के आधार पर भेदभाव करना पूर्णतः असहनीय है। आधिकारिक काग़ज़ात में किसी नागरिक के धर्म का उल्लेख भी, निस्सन्देह, समाप्त कर दिया जाना चाहिए। स्थापित चर्च को न तो कोई सहायता मिलनी चाहिए और न पादरियों को अथवा धार्मिक सोसायटियों को राज्य की ओर से किसी प्रकार की रियायत देनी चाहिए। इन्हें सम-विचार वाले नागरिकों की पूर्ण स्वतन्त्र संस्थाएँ बन जाना चाहिए, ऐसी संस्थाएँ जो राज्य से पूरी तरह स्वतंत्र हों। इन माँगों को पूरा किये जाने से वह शर्मनाक और अभिशप्त अतीत समाप्त हो सकता है जब चर्च राज्य की सामन्ती निर्भरता पर, और रूसी नागरिक स्थापित चर्च की सामन्ती निर्भरता पर जीवित था, जब मध्यकालीन, धर्म-न्यायालयीय क़ानून (जो आज तक हमारी दंडविधि संहिताओं और क़ानूनी किताबों में बने हुए हैं) अस्तित्व में थे और लागू किये जाते थे, जो आस्था अथवा अनास्था के आधार पर मनुष्यों को दण्डित करते, मनुष्य की अन्तरात्मा का हनन किया करते थे, और आरामदेह सरकारी नौकरियों तथा सरकार द्वारा प्राप्त आमदनियों को स्थापित चर्च के इस या उस धर्म विधान से सम्बद्ध किया करते थे। समाजवादी सर्वहारा आधुनिक राज्य और आधुनिक चर्च से जिस चीज़ की माँग करता है, वह है-राज्य से चर्च का पूर्ण पृथक्करण।

रूसी क्रांति को यह माँग राजनीतिक स्वतन्त्रता के एक आवश्यक घटक के रूप में पूरी करनी चाहिए। इस मामले में रूसी क्रान्ति के समक्ष एक विशेष रूप से अनुकूल स्थिति है, क्योंकि पुलिस-शासित सामन्ती एकतन्त्र की घृणित नौकरशाही से पादरियों में भी असन्तोष, अशान्ति और घृणा उत्पन्न हो गयी है। रूसी ऑर्थोडाक्स चर्च के पादरी कितने भी अधम और अज्ञानी क्यों न हों, रूस में पुरानी, मध्यकालीन व्यवस्था के पतन के वज्रपात से वे भी जागृत हो गये हैं, वे भी स्वतन्त्रता की माँग में शामिल हो रहे हैं। नौकरशाही व्यवहार और अफ़सरवाद के, पुलिस के लिए जासूसी करने के ख़िलाफ़- जो "प्रभु के सेवकों" पर लाद दी गयी है - विरोध प्रकट कर रहे हैं। हम समाजवादियों को चाहिए कि इस आन्दोलन को अपना समर्थन दें। हमें पुरोहित वर्ग के ईमानदार सदस्यों की माँगों को उनकी परिपूर्णता तक पहुँचाना चाहिए और स्वतन्त्रता के बारे में उनकी प्रतिज्ञाओं के प्रति उन्हें दृढ़ निश्चयी बनाते हुए यह माँग करनी चाहिए कि वे धर्म और पुलिस के बीच विद्यमान सारे सम्बन्धों को दृढ़तापूर्वक समाप्त कर दें। या तो तुम सच्चे हो, और इस हालत में तुम्हें चर्च और राज्य तथा स्कूल और चर्च के पूर्ण पृथक्करण का, धर्म के पूर्ण रूप से और सर्वथा व्यक्तिगत मामला घोषित किये जाने का पक्ष ग्रहण करना चाहिए। या फिर तुम स्वतन्त्रता के लिए इन सुसंगत माँगों को स्वीकार नहीं करते, और इस हालत में तुम स्पष्टतः अभी तक आरामदेह सरकारी नौकरियों और सरकार से प्राप्त आमदनियों से चिपके हुए हो। इस हालत में तुम स्पष्टतः अपने शस्त्रों की आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास नहीं करते, और राज्य की घूस प्राप्त करते रहना चाहते हो। ऐसी हालत में समस्त रूस के वर्ग चेतन मज़दूर तुम्हारे ख़िलाफ़ निर्मम युद्ध की घोषणा करते हैं।

जहाँ तक समाजवादी सर्वहारा की पार्टी का प्रश्न है, धर्म एक व्यक्तिगत मामला नहीं है। हमारी पार्टी मज़दूर वर्ग की मुक्ति के लिए संघर्ष करने वाले अग्रणी योद्धाओं की संस्था है। ऐसी संस्था धार्मिक विश्वासों के रूप में वर्ग चेतना के अभाव, अज्ञान अथवा रूढ़िवाद के प्रति न तो तटस्थ रह सकती है, न उसे रहना चाहिए। हम चर्च के पूर्ण विघटन की मांग करते हैं ताकि धार्मिक कोहरे के ख़िलाफ़ हम शुद्ध सैद्धान्तिक और वैचारिक अस्त्रों से, अपने समाचारपत्रों और भाषणों के साधनों से संघर्ष कर सकें। लेकिन हमने अपनी संस्था, रूसी सामाजिक जनवादी मज़दूर पार्टी की स्थापना ठीक ऐसे ही संघर्ष के लिए, मज़दूरों के हर प्रकार के धार्मिक शोषण के विरुद्ध संघर्ष के लिए की है। और हमारे लिए वैचारिक संघर्ष केवल एक व्यक्तिगत मामला नहीं है, सारी पार्टी का, समस्त सर्वहारा का, मामला है। यदि बात ऐसी ही है, तो हम अपने कार्यक्रम में यह घोषणा क्यों नहीं करते कि हम अनीश्वरवादी हैं? हम अपनी पार्टी में ईसाइयों अथवा ईश्वर में आस्था रखने वाले अन्य धर्मावलम्बियों के शामिल होने पर क्यों नहीं रोक लगा देते?

इस प्रश्न का उत्तर ही उन अति महत्वपूर्ण अन्तरों को स्पष्ट करेगा जो बुर्जुआ डेमोक्रेटों और सोशल डेमोक्रेटों द्वारा धर्म का प्रश्न उठाने के तरीक़ों में विद्यमान हैं।

हमारा कार्यक्रम पूर्णतः वैज्ञानिक, और इसके अतिरिक्त भौतिकवादी विश्व दृष्टिकोण पर आधारित है। इसलिए हमारे कार्यक्रम की व्याख्या में धार्मिक कुहासे के सच्चे ऐतिहासिक और आर्थिक स्रोतों की व्याख्या भी आवश्यक रूप से शामिल है। हमारे प्रचार कार्य में आवश्यक रूप से अनीश्वरवाद का प्रचार भी शामिल होना चाहिए; उपयुक्त वैज्ञानिक साहित्य का प्रकाशन भी, जिस पर एकतन्त्रीय सामन्ती शासन ने अब तक कठोर प्रतिबन्ध लगा रखा था और जिसे प्रकाशित करने पर दण्ड दिया जाता था, अब हमारी पार्टी के कार्य का एक क्षेत्र बन जाना चाहिए। अब हमें सम्भवतः एंगेल्स की उस सलाह का अनुसरण करना होगा जो उन्होंने एक बार जर्मन समाजवादियों को दी थी-अर्थात हमें फ़्रांस के अठारहवीं शताब्दी के प्रबोधकों और अनीश्वरवादियों के साहित्य का अनुवाद करना और उसका व्यापक प्रचार करना चाहिए।

लेकिन हमें किसी भी हालत में धार्मिक प्रश्न को अरूप, आदर्शवादी ढंग से, वर्ग संघर्ष से असम्बद्ध एक "बौद्धिक" प्रश्न के रूप में उठाने की ग़लती का शिकार नहीं बनना चाहिए, जैसा कि बुर्जुआ वर्ग के बीच उग्रवादी जनवादी कभी-कभी किया करते हैं। यह सोचना मूर्खता होगी कि मज़दूर अवाम के सीमाहीन शोषण और संस्कारहीनता पर आधारित समाज में धार्मिक पूर्वाग्रहों को केवल प्रचारात्मक साधनों से ही समाप्त किया जा सकता है। इस बात को भुला देना कि मानव जाति पर लदा धर्म का जुवा समाज के अन्तर्गत आर्थिक जुवे का ही प्रतिबिम्ब और परिणाम है, बुर्जुआ संकीर्णता ही होगी। सर्वहारा यदि पूँजीवाद की काली शक्तियों के विरुद्ध स्वयं अपने संघर्ष से प्रबुद्ध नहीं होगा तो पुस्तिकाओं और शिक्षाओं की कोई भी मात्रा उन्हें प्रबुद्ध नहीं बना सकती। हमारी दृष्टि में, धरती पर स्वर्ग बनाने के लिए उत्पीड़ित वर्ग के इस वास्तविक क्रान्तिकारी संघर्ष में एकता परलोक के स्वर्ग के बारे में सर्वहारा दृष्टिकोण की एकता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

यही कारण है कि हम अपने कार्यक्रम में अपनी नास्तिकता को न तो शामिल करते हैं और न हमें करना चाहिए। और यही कारण है कि हम ऐसे सर्वहाराओं को, जिनमें अभी तक पुराने पूर्वाग्रहों के अवशेष विद्यमान हैं, अपनी पार्टी में शामिल होने पर न तो रोक लगाते हैं, न हमें इस पर रोक लगानी चाहिए। हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण की शिक्षा सदा देंगे और हमारे लिए विभिन्न "ईसाइयों" की विसंगतियों से संघर्ष चलाना भी जरूरी है। लेकिन इसका जरा भी यह अर्थ नहीं है कि धार्मिक प्रश्न को प्रथम वरीयता दे देनी चाहिये। न ही इसका यह अर्थ है कि हमें उन घटिया मत-मतान्तरों और निरर्थक विचारों के कारण, जो तेजी से महत्वहीन होते जा रहे हैं और स्वयं आर्थिक विकास की धारा में तेजी से कूड़े के ढेर की तरह किनारे लगते जा रहे हैं, वास्तविक क्रान्तिकारी आर्थिक और राजनीतिक संघर्ष की शक्तियों को बँट जाने देना चाहिए।

प्रतिक्रियावादी बुर्जुआ वर्ग ने अपने आप को हर जगह धार्मिक झगड़ों को उभाड़ने के दुष्कृत्यों में संलग्न किया है, और वह रूस में भी ऐसा करने जा रहा है-इसमें उसका उद्देश्य आम जनता का ध्यान वास्तविक महत्व की और बुनियादी आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं से हटाना है जिन्हें अब समस्त रूस का सर्वहारा वर्ग क्रांतिकारी संघर्ष में एकजुट हो कर व्यावहारिक रूप से हल कर रहा है। सर्वहारा की शक्तियों को बाँटने की यह प्रतिक्रियावादी नीति, जो आज ब्लैक हंड्रेड (राजतंत्र समर्थक गिरोहों) द्वारा किये हत्याकाण्डों में मुख्य रूप से प्रकट हुई है, भविष्य में और परिष्कृत रूप ग्रहण कर सकती हैं। हम इसका विरोध हर हालत में शान्तिपूर्वक, अडिगता और धैर्य के साथ सर्वहारा एकजुटता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की शिक्षा द्वारा करेंगे - एक ऐसी शिक्षा द्वारा करेंगे जिसमें किसी भी प्रकार के महत्वहीन मतभेदों के लिए कोई स्थान नहीं है। क्रान्तिकारी सर्वहारा, जहाँ तक राज्य का संबंध है, धर्म को वास्तव में एक व्यक्तिगत मामला बनाने में सफल होगा। और इस राजनीतिक प्रणाली में, जिसमें मध्यकालीन सड़न साफ़ हो चुकी होगी, सर्वहारा आर्थिक ग़ुलामी के, जो कि मानव जाति के धार्मिक शोषण का वास्तविक स्रोत है, उन्मूलन के लिए सर्वहारा वर्ग व्यापक और खुला संघर्ष चलायेगा।



लेनिन

Saturday, 20 June 2020


_________________________
बलवान समाज वही होता है, जिसकी तरुणाई सबल होती है, जिसमें मृत्यु को वरण करने की क्षमता होती है, जिसमें भविष्य के सपने होते हैं और कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है, वही तरुणाई है।
🖌 महादेवी वर्मा
_________________________
उन चीज़ों के लिए जान देना सार्थक है जिन चीज़ों के बिना जीना सार्थक नहीं होता। 
🖌 एदुआर्दो गालियानो
_________________________
मैं असम्‍पृक्‍त व्‍यक्ति से घृणा करता हूँ। मेरा विश्‍वास है कि ज़ि‍न्‍दा होने का मतलब होता है पक्ष चुनना। जो वास्‍तव में ज़ि‍न्‍दा हैं वे एक नागरिक और एक पक्षधर व्‍यक्ति होने से बच नहीं सकते। असम्‍पृक्‍तता और उदासीनता जीवन नहीं है, बल्कि परजीविता और मनोविकृति है।
🖌 अन्‍तोनियो ग्राम्‍शी
_________________________
सूअर से कभी भी कुश्ती मत लड़ो। तुम गंदे हो जाओगे, और इसके अलावा, सूअर यह पसंद करता है।
🖌 जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
_________________________
तुम प्रेरणा का इंतज़ार नहीं कर सकते। तुम्हें लट्ठ लेकर इसके पीछे भागना होगा।
🖌 जैक लंडन
_________________________

"बात यह है कि जो कुछ भी नया है,
हमें उनका पालन-पोषण करना होगा।
उनमें से जो कुछ भी सर्वोत्कृष्ट होगा,
उपयोगी और सुन्दर होगा,
जीवन उन्हें चुन लेगा।"
🖌 व्ला.इ. लेनिन ( 'एक महान शुरुआत' )
_________________________
ज़िन्दगी का मामला सिर्फ यह नहीं होता कि आपके पास अच्छे पत्ते हों, कभी-कभी आपको खराब पत्तों से भी अच्छा खेलना होता है।
🖌 जैक लंडन
_________________________
केवल अपने क्षणिक गौरव के लिए नहीं, वरन् अपने देश के अनन्‍त गौरव तथा समस्‍त मानवता के कल्‍याण के लिए कार्यरत रहना-इससे अधिक श्रेष्‍ठ और महान कार्य और क्‍या हो सकता है?
🖌 चेर्नीशेव्‍स्‍की (1828-1889)
_________________________
अब से बीस साल बाद तुम उन चीज़ों को लेकर अधिक मायूस होगे जो तुमने नहीं किये बनिस्पत उन चीज़ों के, जो तुमने किये। इसलिए, जहाज़ की रस्सियाँ खोल दो। पाल चढ़ाकर सुरक्षित बंदरगाह से दूर निकल जाओ। तिजारती हवाओं को अपने बादबानों में गिरफ़्तार कर लो। खोजी यात्राएँ करो। सपने देखो। अन्वेषण करो।
🖌 मार्क ट्वेन
_________________________
यदि हर चीज़ पारदर्शी होती तो विचारधाराएँ होती ही नहीं !
🖌 फ्रेडरिक जेम्सन
_________________________
संघर्ष जितना कठिन होता है, जीत उतनी ही शानदार होती है।
🖌 टॉम पेन
(अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांति के दार्शनिक और नेता )
_________________________
तब रोने का क्या मतलब जब ऐसी ज़बरदस्त हवा चल रही है कि कुछ भी सुन पाना मुमकिन नहीं |
🖌 बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
_________________________
अपने को शिक्षित करो क्योंकि हमें तुम्हारी सारी बुद्धिमत्ता की ज़रूरत होगी। स्वयं को उद्वेलित करो क्योंकि हमें तुम्हारे समस्त उत्साह की ज़रूरत होगी। स्वयं को संगठित करो क्योंकि हमें तुम्हारी सारी शक्ति चाहिए होगी।
🖌 अन्तोनियो ग्राम्शी
_________________________
जब नायक मंच से चले जाते हैं, तो विदूषक आ जाते हैं।
🖌 हाइनरिख हाइने (उन्नीसवीं सदी के महान जर्मन कवि)
_________________________
वीरोचित ढंग से लड़ना बड़ी बात है ... लेकिन कितने ऐसे लोग हैं जो एक दिन के लिए नहीं,एक घंटे के लिए नहीं, बल्कि वर्षों की लम्बी, थकाऊ अवधि के दौरान, हर दिन वीरोचित बने रहेंगे ?
🖌 एलीनोर मार्क्स ( यूरोपीय मज़दूर आन्दोलन की ख्यात नेत्री और कार्ल मार्क्स की पुत्री )
पेरिस कम्यून (1871) के 21 वर्षों बाद उसे याद करते हुए
_________________________
अपने दृढ विश्वासों के बावजूद, मैं हमेशा से ऐसा इंसान रहा हूँ, जो नए अनुभव और नए ज्ञान के सामने आने के साथ ही, तथ्यों का सामना करने और ज़िन्दगी की वास्तविकता को स्वीकार करने की कोशिश करता है। मेरा दिमाग़ हमेशा से खुला रहा है जो सच्चाई की बुद्धिमत्ता भरी खोज के हर रूप के साथ कदम मिलाकर चलता है।
🖌 माल्कम एक्स (अमेरिकी अश्वेत क्रांतिकारी, जिनकी आज ही के दिन, 53 वर्षों पहले हत्या कर दी गयी थी)
_________________________
वक्त आ गया है कि आप लोग जो 'मानववादी हैं और व्यावहारिक बनना चाहते हैं,' यह समझ लें कि दुनिया में दो किस्म की नफरतें चल रही हैं। एक नफरत है जो कातिलों के दिल में है, जो उनकी आपसी स्पर्धा और भविष्य के डर से पैदा होती है -- कातिलों को कयामत का सामना करना ही है। दूसरी नफरत -- मेहनतकश वर्ग की नफरत -- जिन्दगी की मौजूदा तस्वीर से है और इस अहसास ने, कि शासन करने का अधिकार उनका ही होना चाहिए इस नफरत की लौ को और भी तेज और रोशन कर दिया है। ये दोनों नफरतें गहराई के एक ऐसे बिन्दु पर पहुँच चुकी है कि कोई भी चीज़ या आदमी उनका आपस में समझौता नहीं करवा सकता, और वर्गों के बीच के अवश्यंभावी संघर्ष और मेहनतकशों की जीत के सिवा कोई चीज दुनिया को इस नफरत से मुक्ति नहीं दिला सकती।
🖌 मक्सिम गोर्की ('संस्कृति के निर्माताओं', तुम किसके साथ हो?)
_________________________
...हर प्रकार के महान प्रेम की तरह

...हर प्रकार के महान प्रेम की तरह, बच्‍चे के लिए आदमी का प्रेम भी तभी सृजनात्‍मक बनता है और बच्‍चे को सच्‍चा तथा स्‍थाई सुख दे पाता है जबकि प्रेम करने वाले व्‍यक्ति के जीवन की परिधि‍ को वह विशाल बनाता है, उसे वह एक अधिक मूल्‍यवान व्‍यक्ति में परिवर्तित कर देता है, किन्‍तु अपने प्रिय व्‍यक्ति को किसी मूर्ति में नहीं रूपान्‍तरित कर देता। ऐसा प्रेम जिसकी केवल एक ही व्‍यक्ति पर वर्षा की जाती है और जो जीवन का सारा सुख आनन्‍द अकेले उसी एक व्‍यक्ति से प्राप्‍त करता है, अन्‍य सब चीज़ें उसके लिए एक बोझ और यन्‍त्रणा की वस्‍तुएँ बन जाती हैं दोनों ही सम्‍बन्धित व्‍यक्तियों के लिए नरक हो जा सकता है...

उसकी आत्‍मा की रक्षा करने और उसे समृद्ध बनाने के लिए आवश्‍यक है कि उसे उन सब चीज़ों को देखने और सुनने की शिक्षा दी जाये जिन्‍हें देखने और सुनने की क्षमता उसमें आ गयी है, जिससे कि तुम्‍हारे प्रति उसका प्रेम अगाध मित्रता तथा अनन्‍त विश्‍वास का स्‍वरूप ग्रहण कर ले।

🖌 फेलिक्‍स ज़र्जिन्‍स्‍की (जेल से पत्‍नी के नाम पत्र, 2दिसम्‍बर,1913)
(ज़र्जिन्‍स्‍की बोल्‍शेविक पार्टी के एक शीर्ष नेता और लेनिन तथा स्‍तालिन के अनन्‍य सहयोगी थे। ज़ारशाही के जेलों में लम्‍बे समय तक यातना झेली। क्रांति के बाद वे 'चेका' के स्‍थायी अध्‍यक्ष थे, जो क्रांति विरोधी कार्रवाईयों में लिप्‍त प्रतिक्रांतिकारियों को कुचलने के साथ ही क्रांति और गृहयुद्ध के दौरान यतीम हुए बच्‍चों की देखरेख भी करती थी)
_________________________
चीखते-चिल्लाते महत्वोन्मादियों, गुंडों, शैतानों और स्वेच्छाचारियों की यह फ़ौज जो फासीवाद के ऊपरी आवरण का निर्माण करती है, उसके पीछे वित्तीय पूंजीवाद के अगुवा बैठे हैं, जो बहुत ही शांत भाव, साफ़ सोच और बुद्धिमानी के साथ इस फ़ौज का संचालन करते हैं और इनका ख़र्चा उठाते हैं। फासीवाद के शोर-शराबे और काल्पनिक विचारधारा की जगह उसके पीछे काम करने वाली यही प्रणाली हमारी चिंता का विषय है। और इसकी विचारधारा को लेकर जो भारी-भरकम बातें कही जा रही हैं उनका महत्व पहली बात, यानी घनघोर संकट की स्थितियों में कमज़ोर होते पूंजीवाद को टिकाये रहने की असली कार्यप्रणाली के संदर्भ में ही है। 
🖌 रजनी पाम दत्त

➖➖➖➖➖➖➖➖

Saturday, 13 June 2020

कविता

जारी है-जारी है
अभी लड़ाई जारी है।

यह जो छापा तिलक लगाए और जनेऊंधारी है
यह जो जात पांत पूजक है यह जो भ्रष्टाचारी है
यह जो भूपति कहलाता है जिसकी साहूकारी है
उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है।
 
यह जो तिलक मांगता है, लडके की धौंस जमाता है
कम दहेज पाकर लड़की का जीवन नरक बनाता है
पैसे के बल पर यह जो अनमोल ब्याह रचाता है
यह जो अन्यायी है सब कुछ ताकत से हथियाता है
उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है।
 
यह जो काला धन फैला है, यह जो चोरबाजारी हैं
सत्ता पाँव चूमती जिसके यह जो सरमाएदारी है
यह जो यम-सा नेता है, मतदाता की लाचारी है
उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है।
 
जारी है-जारी है
अभी लड़ाई जारी है।
                                -सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

१९५३ में स्टालिन की शव यात्रा पर उमड़ा सैलाब 

*On this day in 1953, a sea of humanity thronged the streets for Stalin's funeral procession.* Joseph Stalin, the Soviet Union's fea...